कौन है इनका हत्यारा


    यदि यह कहा जाए:- कि पूरा देश असंवेदनशील, निष्ठुर, उत्पीड़क व भावना शून्य हो गया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। एक अभिनेता जो लंबे समय से कर्क रोग से पीड़ित थे 29 अप्रैल और दूसरे अभिनेता भी कैंसर से पीड़ित थे 30 अप्रैल 2020 को उनका देहावसान हो गया। देश का हर व्यक्ति संवेदना प्रकट करने में होड़ लगा लिया कि कौन पहले खिराज ए अक़ीदत पेश करेगा।  इतनी तेजी से छातियां पीटी जा रही थी जैसे; इरफान व ऋषि कपूर नहीं रहे,"तो अब यह दुनिया भी नहीं रहेगी। उजड़ जाएगा बालीवुड और राड़ हो जाएगी मुंबई। और बंद हो जाएंगे देश और विदेश के सिनेमाघर । खासतौर से वह गैस सिलेंडर जलना बंद हो जाएगा," जिसे उज्ज्वला योजना के तहत 25 करोड़ परिवारों में वितरण किया गया है । उज्ज्वला योजना के तहत वितरित गैस कनेक्शनों की खासियत यह है कि घर में राशन हो या न हो; परन्तु यह परिवार के हर सदस्य को भरपेट पकवान परोसता अवश्य है। सरकार के दावे यहीं हैं।

     हम इरफान खान और ऋषि कपूर को श्रद्धांजलि देने के विरोधी बिल्कुल नहीं है। मुझे किसी तरह का एतराज भी नहीं है। बावजूद इसके कि धन के लालच में अधिकांश अभिनेताओं ने हमें मीठा ज़हर खाने के लिए गुमराह किया है । एतराज़ ही नही होता दिल भी फट जाता है; जब लोग इरफान, ऋषि कपूर को श्रद्धांजलि देने के लिए लघु व दीर्घ शंका जैसी शारीरिक सेवाओं को भूलकर लिप्त हो जाते हैं सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता प्रदर्शित कर संवेदना प्रकट करने में। *परन्तु जब गरीब, लाचार, मजबूर व भूखे को सरकार की साजिश व  दुर्व्यवस्थाएं मार डालती है," तब इन्हीं संवेदना की अपहुँच ऊंचाइयों पर बैठे महाशयों का दिमाग पक्षाघात का शिकार हो जाता है। इनके बाजुओं को लकवाग्रस्त कर इन्हें मोबाइल की सोशल साइट के नेटवर्क से बहुत दूर कर देता है*।
  ऐसी मनोवृत्ति की खेती क्यों हो रही है," जहां एक व्यक्ति स्वर्गवासी हो जाता है, तब देश के कीड़े-मकोड़े संवेदना प्रकट करने में इतने आतुर हो, भीड़ में गुम हो जाते है कि:- यदि वही भीड़ उन्हें कुचल दें," तब भी उन्हें होश नहीं आएगा कि बचे रहेंगे तभी संवेदना प्रकट कर पाएंगे अन्यथा उनकी खुद की लाशों को चील व कौव्वे खाने से भी इंकार कर देंगे।  सरकार के चराचर भयावह चरित्र से देश के नागरिक ही नहीं, अपितु पशु पक्षी भी सहमें बैठे हैं। जब से कोरोना को दैत्याकार रूप में प्रस्तुत किया गया है,"तब से चील्ह, गिद्ध,बाज,कुत्ते भेड़ियें,लकड़बग्घे, चीता शेर व अन्य पक्षी व जानवर शाकाहारी हो गए हैं। वह सोचने पर विवश है कि सड़कों पर अपनी जान बचाने के लिए भागते मजदूरों के मृत शरीर को स्वादिष्ट भोजन समझ यदि दावत उड़ाने लगे," तब कहीं हम भी कोरोना के शिकार न हो जाए! *वैसे;भी जानवरों ने तभी से सोचना शुरू किया है जब से इंसानों ने पुर्व के जानवरों की भांति सोचना बंद कर दिया है*।

     हमें इंसाफ अली 35 वर्षीय निवासी श्रावस्ती की हत्या ने  अंदर से हिला कर रख दिया है । इंसाफ अली वासी, मुंबई से 1400 किलोमीटर दूरी पैदल चलते-चलते थक हार कर 25 अप्रैल को अपने घर पहुंचे थे। एक घंटे बाद इन्हें क्वारंटीन कर दिया गया। यदि कागज के पन्नों से हटकर जमीनी हकीक़त की बात की जाए," तब भारत में बनते क्वॉरेंटाइन स्थान बचाव के कम यातना के अड्डे अधिक प्रतीत होते हैं। जहां न तो ढंग से  लेटने और बैठने की जगह है और न ही खाने-पीने की उचित व्यवस्था। जो व्यक्ति 1400 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर पूरी करता है,"उसे कम से कम एक हफ्ते तक प्रोटीनयुक्त भोजन व आराम की आवश्यकता होती है।  जिस वक्त इंसाफ अली को पौष्टिक आहार की दरकार थी उसे यातना शिविर में डालने का मंतव्य क्या है? क्या यह सरकार की ठंडे दिमाग से मजदूरों की
 हत्या करने की साज़िश का हिस्सा तो नहीं है?
          शिव कुमार जिला संतकबीर नगर थाना धनघटा गांव बार्गो निवासी नदी में डूब कर मर गया।  उसके घर में किसी की तबीयत बहुत खराब थी। 102, 108 की एंबुलेंस को बार-बार फोन करने के बाद भी जब कहीं से उचित मदद न मिली,"तब वह दवा खरीदने के मकसद से सिकरीगंज के लिए निकला पड़ा । कुआनो नदी पर बने पुल पर पुलिस ने जबरदस्त बैरिकेटिंग कर रखी थी । भारी पुलिस बल की तैनाती ने उसे भयभीत कर दिया। पुलिस उत्पीड़न के वायरल होते वीडियो ने पुलिस का बर्बर स्वरूप प्रदेशवासियों के सामने प्रस्तुत कर दिया है। हर शरीफ, ईमानदार व्यक्ति इस आदमखोर चेहरे से अपने को बचा कर रखना चाहता है। शिवकुमार ने भी वही किया। दवा की इमरजेंसी ने उसे नदी पार कर दवा लेने का मार्ग सुझाया वह नदी में कूद गया । हैवान पुलिसकर्मी उसे डूबता देखते रहे और वह छटपटाता हुआ अपने प्राण निकलते दम तक संघर्ष करता रहा।
     क्या इंसाफ अली व शिवकुमार संवेदना के हकदार नहीं है, नहीं दी जानी चाहिए इन्हें श्रद्धांजलि? सरकार के बनते हत्यारे चरित्र का प्रतिकार नहीं होना चाहिए? और दोषियों के खिलाफ इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए? पक्षाघात का शिकार मस्तिष्क शायद कोई जवाब न दे! क्यों देगा साब......
 इन्हें श्रद्धांजलि देने से अनमोल लोगों से रिश्ते रखने की इनकी चाहत कहां पूरी हो रही है? साहब; यह दोनों स्वर्गवासी नहीं है। इनकी हत्या हुई है। जिसने इन्हें मौत की ठंडी गोद में सुला दिया है। आप ठहरे स्वर्ग वासियों को श्रद्धांजलि देने वाले लोग; इन मरे लोगों को श्रद्धांजलि क्यों देंगे!
 भावभीनी श्रद्धांजलि व हत्यारों को सजा होने की प्रत्याशा में:-
गौतम राणे सागर ।

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