किसान के दर्द

 


किसान के दर्द,वतन ने जब मांगा खून, बदन का सारा लहू निचोड़ दिया*  अफसोस मगर इतिहास ने किस मोड़ पर लाकर छोड़ दिया*

      जब कृषि संबंधित तीनों काले कानून सरकार अपने असामियों को ख़ुश रखने के उद्देश्य से वापस लेना ही नही चाहती है,"तब वार्ता के दौरों का अभिप्राय क्या है? क्या सरकार वार्ता के लिए तारीख पर तारीख देकर उनकी शहादतों पर अट्टहास करने के अवसर का जुगत कर रही है या ठंडे दिमाग से किसानों की हत्या की साजिश रच रही है?

    झूठ और फरेब की असीम शक्तियों के स्वामी; इस देश के विनाश का सारा दोष उन पर मढ़ रहे है जिन्होंने देश को बचाने के प्रयास में सर्वोत्तम साहस, त्याग और वीरता का परिचय दिया है । किसी भी योजनाबद्ध उपाय से राष्ट्र के जनसाधारण की भावनाओं को उभार कर उन्हें आसानी से पथभ्रष्ट किया जा सकता है। सहज विश्वासी लोग छोटे झूठ की तुलना में बड़े झूठ के शिकार शीघ्र हो जाते हैं । लोग स्वयं छोटी-छोटी बात में झूठ तो बोलते हैं लेकिन बड़ी मात्रा में झूठ बोलने में शर्माते हैं। उनके मस्तिष्क में यह बात कभी नहीं आती कि बड़े असत्यों की कल्पना भी संभव है और न ही व विश्वास करने के लिए सहज होते हैं कि कुछ लोग भ्रष्ट आचरण से सत्य को विकृत करने की धूर्तता कर सकते हैं। चाहे सारे तथ्य उन्हें बता दिए जाएं। उनके सामने झूठ को सिद्ध भी कर दिया जाए, फिर भी वह संदेह करेंगे, विचलित रहेंगे और यही सोचते रहेंगे कि इसका कोई स्पष्टीकरण हो सकता है।

    यह तथ्य संसार के मिथ्याचारियों, झूठ बोलने की कला के विशेषज्ञ तथा षड्यंत्रकारिर्यो को पूरी तरह ज्ञात है कि निकृष्ट ध्येय के लिए मिथ्यावाद का उपयोग कैसे किया जाता है। झूठ, फरेब व मिथ्यावाद से किस प्रकार लोगों को बरगला कर उनका उत्पीड़न किया जा सकता है । प्रतीत होता है कि किसान आन्दोलन को भटकाने के उद्देश्य से कुतर्क करने की कवायदों के भंडारण में विराजमान सरकार आये दिन इस आन्दोलन को बदनाम करने की कोशिशों में मुँह की खाने के बाद भी वह अपने कुत्सित हथकंडों से किसानों को थकाने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। देश के लिए यह सरकार तपेदिक रोग बन गई है। धीरे-धीरे विकास के हर क्षेत्र का एक-एक कर विनाश कर रही है। 

       तपेदिक रोग से पीड़ित इस देश की सोच क्या देश को भयानक विनाश से टालने की मुहिम मे सक्रिय हो सकती है यदि हाँ तो यही क्षण है प्रतिकार का । देश को खूनी पंजों से बचाकर एक बार फिर से स्वस्थ बनाये रखने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने का। आवश्यकता है देश को तपेदिक रोग के मुँह में झोकने वाले, नित नये-नये जुमले गढ़ने वालों जुमलेश्वरों को सज़ा देने की और देश की पूरी शक्ति से इलाज कर पुनः स्वस्थ बनाने की । तपेदिक मौत की डरावनी लहर लाकर मनुष्य को हिलाकर रख देती है । महामारी व अन्य संचारी रोग धोखे से बढ़ती है, धीरे-धीरे उदासीनता फैलाती है। यथार्थ जीवन में पूरी शक्ति से सामना करने से काबू किया जा सकता है । तपेदिक को धीमे तरीके से ही रोकने के प्रयास किये जाते हैं फलतः शनैः शनैः लोग व्यसनी हो जाते हैं । संतोष है कि अब यह भी लाइलाज नही रहा । यह विनाशकारी स्वरूप ग्रहण करे इससे पहले ही चैतन्यता का आह्वान आवश्यक है । बर्बादी की राह पर निकल पड़े इस देश के विनाश की गति पर यदि शीघ्र विराम नहीं लगाया गया तो यह देश तपेदिक और महामारी वर्तमान में स्वाइन फ्लू ,जेई व एई,कोरोना व स्ट्रेन जैसी गम्भीर बीमारियों का रूप धारण कर लकवा ग्रस्त हो जाएगा । आने वाली कई पीढ़ियां सीधी तो खड़ी हो ही नही सकती हाँ कमर के बल खड़ी भी नहीं हो पाएंगी यह भी संशय व भविष्य के गर्भ में समाया रहेगा। 

           रोगों के कीटाणु देश के शरीर में धूर्त राष्ट्रवाद के रूप में पनप रहे हैं। राष्ट्र की एकता-अखंडता की अति आवश्यकता है परन्तु छद्म राष्ट्र की कतई नही। यह फ़ितरत की वह असीम शक्तियां हैं जिनके जिह्वा पर राष्ट्र का नाम तो रहता है परन्तु मन और मस्तिष्क इतना स्याह है कि वह हमेशा राष्ट्रीय एकता व अखंडता को छिन्न-भिन्न करने के छल में ही व्यस्त रहते हैं। यह कीटाणु देश के शरीर में जितनी ज्यादा देर तक जीवित रहेंगे, शरीर के रक्त को उतना ही प्रदूषित करने का उन्हें अवसर मिलता रहेगा। समय जैसे-जैसे बीतता जाएगा भयंकर विषों की पहचान उतना ही कठिन हो जाएगा। कीटाणुओं का विनाश किस छिड़काव से किया जा सकता है किसानों को भली-भांति मालूम है। हमें उन पर विश्वास कर उनके समर्थन पर विचार करना चाहिए। शायद देश इसी शहादतों की प्रतीक्षा में हो। 

  गौतम राणे सागर,

  राष्ट्रीय संयोजक,

  संविधान संरक्षण मंच।

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