थाने में हील हुज्जत चल रही थी। नर नारायण चतुर्वेदी एक सिपाही कर्मवीर की सहायता से राम सहाय को पकड़ कर थाने लाए थे। दावा कर रहे थे कि राम सहाय ने इनके कार्य में रोड़ा अटकाया है। एक सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा पहुंचाने के मामले में थाने के परिसर में राम सहाय की अच्छी तरह से क्लास ली जा रही थी।कोतवाल न्याय चंद सिंह आग बबूला हो रहे थे,उनकी भाव भंगिमा ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे वह राम सहाय को अपने अग्नि उगलते नेत्रों से भून डालेंगे और उस भुने गोश्त को टॉप्स के सॉस के साथ गटक जाएंगे।
बढ़ती भीड़ एक बड़े दर्शक दीर्घा में बदल चुकी थी। हुजूम का हर एक शख़्स उत्सुक था जानना चाहता था आख़िर माजरा क्या है? प्रकरण जानने की व्याकुलता की स्पष्ट लकीरे हर चेहरे पर पढ़ी जा सकती थी। पुलिस राम सहाय पर थर्ड डिग्री का प्रयोग कर रही थी। पुलिसिया घुड़की में यह बात तैर रही थी नर नारायण चतुर्वेदी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है। उच्च शिक्षा प्राप्त मानुष क्या ईमानदारी से अपना धंधा भी नही कर सकता? इन मूर्खों को कौन ज्ञान दे कि हम न्यू इंडिया में रहते हैं। शाइनिंग इंडिया का दौर ख़त्म हो चुका है। हमें परोपकार, परस्पर सहयोग की प्रवृति बदलनी होगी, आत्म निर्भर बनने की जरूरत है।
मामला गूढ़ रहस्य में बदलने लगा था। आम जनता हतप्रभ थी। उनकी समझ में बिल्कुल कुछ नही आ रहा था। मामला उलझता देख हनुमान प्रसाद ने भीड़ का नेतृत्व अपने हाथ रखने का निश्चय किया। हिम्मत जुटा कर उन्होंने कहा कि मैं कोतवाल से जाकर पूछता हूं कि आख़िर किस बात पर राम सहाय को पीटा जा रहा और जेल भेजने की तैयारी की जा रही है? आजकल हर कोई गुण्डों/ आतंकवादियों से उलझने की गलती कर लेता है परन्तु पुलिस से उलझने के नाम से हर इंसान सहमता है। उसके हाथ कांपने, पैर थर्राने, शरीर असंतुलित और जबान हलक में अटकने लगती हैं। हनुमान प्रसाद ने अपने शरीर की बिखरी सभी शक्तियों को एकत्रित किया, सीना चौड़ा करते हुए कोतवाल के समक्ष प्रकट हुए।
हनुमान प्रसाद: कोतवाल साहब हमनें आपकी लोकप्रियता के कई किस्से सुने हैं। लोगों में आपकी चर्चा अक्सर होती है। जनमानस पर छपी पुलिस की छाप से इतर आपने अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है। आप न्याय के पुजारी हैं। अपराधी को सज़ा दिलाने में आपकी तत्परता का अन्यत्र कोई उदाहरण सहज नही है।
कोतवाल: हां आज मैं अपने को सहज नही कर पा रहा हूं। द्विविधा में हूं करूं तो क्या करूं? आप ही कुछ मदद करें। राम सहाय को कोतवाल ने बुलाया, कहा घटना को तफ्सील से सुनाओ।
राम सहाय मैं गोरखपुर से फैजाबाद की बस पर सवार हुआ। राम भरोसे ड्राइवर अपनी मस्ती में बस चला रहा था। पेट्रोलियम पदार्थो की बढ़ती मंहगाई का लाभ लेने की गरज से वह बस की रफ़्तार को 60km/घंटा से ऊपर बढ़ने नही दे रहा था। सवारियां उसकी हरक़त से आजिज आ चुकी थी। बौखलाई बार बार राम भरोसे पर बस की गति बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहे थे। राम भरोसे आत्म निर्भर भारत का एक शूरवीर योद्धा था क्यों किसी की सुने। लोग बस की गति बढ़ाने का उस पर जितना दबाव डालते वह उतनी रफ़्तार कम कर देता।
राम सहाय ने आगे वृतांत सुनाते हुए कहता है कि हम लोग बस्ती जनपद की सीमा में प्रवेश करने वाले ही थे कि तीन चार लोग एक बैग मे रखे केसरिया गमछा निकाला और सिर पर बाध भारत माता की जय, वंदे मातरम् का उद्घोष करते हुए लूट पाट करना शूरू कर दिया। इनके नेता नर नारायण चतुर्वेदी ने रिवाल्वर लहरा कर चेतावनी देते हुए ललकारा कि सब को अपना अपना धन और कीमती सामान हमें दे देना चाहिए। हम गो रक्षक है। गऊ माता की सेवा में हम अनवरत तल्लीन रहते हैं। गऊ माता की सेवा मे क्या आप हमारी इतनी मदद नही कर सकते? मैने प्रतिवाद किया आप का यह कृत्य लूट की श्रेणी में आता है, यह लूट है। गो सेवा का यह तरीका नही है। बस में सवार अन्य यात्रियों ने हमारा समर्थन किया, प्रतिवाद में शामिल हो गए।
बस यात्रियों की एकता ने नर नारायण चतुर्वेदी की योजना पर पानी फेर दिया। मुझे कह रहे थे तुम हिन्दू नही हो । तुम राष्ट्र निर्माण और गऊ माता की सेवा मे लीन लोगो के मार्ग के रोड़ा हो। हम लोक सेवक हैं तुम हमारी ड्यूटी में बाधा पहुंचा रहे हो। हमने प्रश्न चतुर्वेदी जी आप सरकारी सेवक कैसे हुए, विस्तार से समझाए। तुम अर्बन नक्सलाइट हो मुंह बंद रखो राम सहाय नही तो जीवन भर जेल में सड़ते रहोगे। वंदे मातरम् और भारत माता की जय के उद्घोष से किया गया कोई भी कार्य राष्ट्र निर्माण की पहल में एक मजबूत कदम है। इस पर प्रश्न चिन्ह नही लगाया जा सकता है।
तुम नक्सली देशद्रोहियों को यह बात समझ नही आयेगी। जब हमारे यशकाई प्रधानमंत्री बार बार हमें समझा रहे हैं कि हम लोगों को आत्म निर्भर बनना है तब क्या हमें उनके किए गए आह्वान का सम्मान नही करना चाहिए? तुम गद्दारों को समझ तो है नही। हम आत्म निर्भर होकर गऊ माता की सेवा के उद्देश्य से यह पुनीत कार्य कर रहे थे जिसे तुम्हारे देशद्रोही क़दम ने विफल कर दिया।
चतुर्वेदी कर्मवीर सिपाही की मदद से हमें यहां घसीट लाए हैं। हम कोतवाल साहब को यही समझा रहे हैं कि यह लुटेरे है इन्होंने बस यात्रियों को लूटने का प्रयास किया है। लेकिन कोतवाल साहब कुछ सुनना ही नही चाहते हैं। एक ही बात की रट लगाए जा रहे हैं कि तुम लिख कर दे दो कि बस में किसी तरह की लूट की घटना नही हुई है। तुम्हें आज़ाद कर दिया जाएगा। राम सहाय अपनी आंखों के सामने घटित इस घिनौनी घटना के दोषियों को सजा दिला कर ही दम लेगा। हमने गांठ बांध ली है कि धर्म के नाम पर देश में दहशतगर्दी फैलाने वाले अत्याचारियों को यूं खुला घूमते नही देखा जा सकता है। इन लूटेरों को दंडित करा कर ही दम लूंगा।
कोतवाल हनुमान प्रसाद की तरह मुखातिब होते हुए बोले मेरी दुविधा का सबब क्या है अब आप बेहतर समझ सकते हैं। मुझे नौकरी करनी है। थाना प्रभारी रहना है। फिर भी पूरी शिद्दत से चाहता हूं कि राम सहाय को जेल न भेजूं। मुझे भी निर्दोष को फर्जी मुकदमें में फसाकर जेल भेजना बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा है। लेकिन यह पाजी राम सहाय मानने को तैयार नही। हनुमान प्रसाद ने भी राम सहाय को समझाने बुझाने का बहुत प्रयास किया परंतु राम सहाय टस से मस नही हुआ। न्याय चंद सिंह अपनी तैनाती कोतवाली में बरकरार रखने का लालच त्याग नही पा रहे हैं। चोर का विरोध किया तो होगी जेल। राम सहाय के खिलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला तैयार हुआ और अब राम सहाय फैज़ाबाद जेल में निरुद्ध है। और नर नारायण चतुर्वेदी राष्ट्र निर्माण और गऊ माता की रक्षा के लिए अपने नए अभियान पर निकल पड़े हैं।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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