आवश्यकता आत्मलोचन की आलोचना की नही


 आवश्यकता आत्मलोचन की आलोचना की नही

     प्रिय लोग आख़िर प्रिय ही होते हैं। अपेक्षा करते हैं हर कोई उन्हीं की तरह कौओं की भांति हजारों साल जीने की परिकल्पना करे। जीवन बड़ा या छोटा हो मायने नही रखता। सार्थक होना चाहिए। आत्म विश्लेषण करें: क्या आपने गलत को गलत कहने का साहस दिखाया, फ़र्क नही पड़ता गलत मार्ग पर अग्रसर अपना है पराया। टोकने की हिम्मत दिखानी चाहिए यदि अपना सगा समझ हम उसके गलत कामों का मुखर विरोध करने के बरक्स मूक दर्शक भी हो जाय तब भी हम अपराध ही कर रहे हैं। गलत बातों का मुखर विरोध ज़रूरी है। सामाजिक जीवन में अपने पराए के लिए कोई स्थान नही। जब हम स्वजन के अपराधों का समर्थन करने लग जाएंगे तब सच की लड़ाई कौन लड़ेगा? 

     बीजेपी (भ्रष्टाचार जननी पार्टी) के गलत निर्णयों का विरोध होना चाहिए। हम भी साथ में हैं। शायद ही किसी ने बीजेपी को इस नाम से संबोधित किया हो, जबकि हमने हमेशा ही इसी नाम से पुकारा है। इसके जातिवादी संप्रदायवादी, भ्रष्टाचारी, वर्णवादी, पूंजीवादी क़दम की कठोर शब्दों में भर्त्सना किए जाने से लोकतन्त्र मज़बूत होगा। लूट संस्कृति के खिलाफ़ विरोधी तेवर दिखाने की प्रबल आवश्यकता ताकि देश और इसकी संपत्तियों को संरक्षित रखा जा सके। परन्तु बीएसपी (बहनजी सम्पत्ति परियोजना) के विरोध से सरोष असहमति क्यों? बहुजन के पतन में ब्राह्मणवादियो की तुलना में नवदेवीवाद और नव रियासतवाद की बड़ी भूमिका है। अंधभक्ति किसी पौराणिक चरित्रों की हो या आधुनिक काल में स्वयंभू घोषित देवियां की दोनों असहनीय है।

       मोदी ने पीएम केयर फंड के नाम पर हज़ारों करोड़ रूपए इकट्ठा किया चहुओर विरोध हुआ। होना भी चाहिए देश की पूंजी व्यक्तिगत उपयोग में नही लाई जा सकती। बीएसपी उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसर हो देश का दिहाड़ी मजदूर अपनी दो जुन की खुराकी काटकर पार्टी को तक़रीबन प्रति वर्ष 200 से 250 करोड़ रूपए चंदा देता है किसलिए? वह सोचता है पार्टी संचालन में बहन जी के मार्ग में धन की कमी न आए परन्तु होता क्या है इस चंदे के पैसे पर बहनजी 90से 95 करोड़ रूपए प्रति वर्ष आयकर देकर अपनी सम्पत्ति घोषित करती हैं। हमें इस लूट के प्रति मूक दर्शक की भूमिका निभानी चाहिए या मुखर विरोध करना चाहिए? मेहनतकश इन्सान का पैसा है जो इसलिए पेट काटकर चंदा देता ताकि उसकी पार्टी की अपनी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो। हमारी अपनी ख़बर होने के बावजूद समाचार की सुर्खियां नही बन पाती!

    जब वह स्वांग करती हैं कि हमने समाज की सेवा करने के लिए शादी नही किया, अपना जीवन समाज के नाम पर कुर्बान कर दिया, तब क्या समाज को जानने का हक़ नही है कि हमारे चंदे का उपयोग समाज हित में हो रहा है या भाई भतीजा हित में? कितने विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जिसमें पार्टी के उन्नयन के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाता ताकि बसपा देश की मुख्य पार्टी की भूमिका में होती? परिवार के नाम पर सैकड़ों फार्म हाउस, कोठियां, दुकानें खरीदने के लिए मजदूरों ने अपना और अपने बच्चों का पेट काटकर चंदा दिया था क्या? वह कौन सा गुप्त विश्वविद्यालय खोला गया है जहां बसपा के नाम पर अपना तन, मन, धन देने वाले कार्यकर्ता जो रात दिन पार्टी के लिए लगे हैं पार्टी के पदाधिकारी बनने की परीक्षा में सबके सब फेल हो जाते हैं लेकिन प्रश्न पत्र लीक करके आपका भाई और भतीजा पास हो जाता है?

       हम बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के सिपाही है उनसे ही सीखा है कि लोकतन्त्र में देश के हर एक नागरिक को राजनीतिक क्षितिज पर ऊंचाई हासिल करने का अवसर मिलना चाहिए।बाबा साहेब चाहते तो यशवन्त राव यानि अपने पुत्र को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते कोई विरोध न करता! उन्होंने ऐसा नही किया। वह जानते थे कि ऐसा करने से जिन रजवाड़ों व रियासतों को कब्र में दफ़न किया गया है वह फिर कुकुरमुत्ते की तरह उग आयेंगे। विश्लेषण करें क्या बहन जी ख़ुद लोकतन्त्र के पतन की आधारशिला नही रख रही हैं?

   हम हमेशा आसान काम करना पसन्द करते हैं। ब्राह्मणवाद विरोध के नाम पर शायद हमें अपनी जातीय मानसिकता प्रदर्शन की छूट मिल जाती है। ब्राह्मणवादियो ने जातियां बनाई सहमत परन्तु उन जातियों को खाद पानी देकर बढ़ाया किसने, हमने ही न? भाजपा विरोध के नाम पर बीएसपी और सपा की खामियां ढक जाती है। स्मरण रखना चाहिए कि जब हम अपने दायित्वों से विमुख होते हैं और कर्तव्य से जी चुराने लगते हैं तभी विरोधी मज़बूत होता है। 1993 से लेकर 3जून1995 तक मुलायम सिंह जी, 3जून1995 से 18अक्टूबर 1995 तक मायावती जी उप्र की मुख्यमंत्री रही। 18अक्टूबर 1995 से 21मार्च 1997तक छः छः महीने तक राष्ट्रपति शासन का दो कार्यकाल रहा। 21 मार्च 1997 से 21सितम्बर 1997 तक मायावती जी पुनः मुख्यमंत्री रही। फिर 21 सितम्बर से 8 मार्च तक कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह से होते होते अंततः 8 मार्च से 3 मई 2002 तक फिर राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 3मई 2002से 29 अगस्त 2003 तक फिर मायावती जी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आरूढ़ हो गई। 29 अगस्त 2003 से 13मई 2007तक मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री रहे।

   1993 से 1997 तक और 2002 से लेकर 2017 मुलायम, मायावती और अखिलेश को ही सत्ता में बने रहने का अवसर मिला है यानि 22 साल का एक लम्बा कार्यकाल दोनों को मिला। तकरीबन दोनो आधे आधे समय तक सत्ता के शीर्ष पर बने रहे। क्या इन दोनों ने बहुजन समाज के सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति का कोई ठोस कार्यक्रम संचालित किया? बार बार ब्राह्मणवाद विरोध के पीछे छिपकर अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश कितनी उचित है?

*गौतम राणे सागर*

 राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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