मुझे न्याय चाहिए जो 'सत्य'से अभिन्न'है और इसे मैं लेकर रहूंगा

शांतिवन शोध पुस्तकालय सत्यपथ गोरखपुर 13 अप्रैल  25
'श्रीमान मुख्य सचिव'
 उत्तर प्रदेश
 ज्ञापन द्वारा 
'श्रीमान जिलाधिकारी'
 गोरखपुर

मुझे न्याय चाहिए जो 'सत्य'से अभिन्न'है और इसे मैं लेकर रहूंगा

"महोदय"सम्मान देते हुए"
मैं 'योग्य'हूं मुझे अयोग्य'ठहराना''यूजीसी रेगुलेशन'एवं नेट' की हत्या हैं। सम्मानित महोदय के माध्यम से मा.कुलपति महोदया से पुनः निवेदन करता हूं कि 'सत्य'स्वीकार कर लें। सत्य क्या है? मैं यूजीसी नेट हूं G.O'शासनादेश'कुलपति' या 145 करोड लोगों में कोई मेरे जीवन काल तक,मुझे अयोग्य नहीं ठहरा सकता। इसलिए योग्यता के आधार पर मेरा टर्मिनेशन निरस्त करते हुए,'30 अगस्त 2003 मानदेंय नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता क्रमानुसार प्रोफेसर पद पर मुझे नियुक्त कर दें यदि यह नहीं कर सकतीं तो त्यागपत्र दे दें क्योंकि 17 अप्रैल को 'महामहिम राज्यपाल'का इफिगी बर्न'एवं पिकेटिंग' करूंगा। 
बार-बार लिख रहा हूं मुझे''सत्य'चाहिए और इसे मैं लेकर रहूंगा।

मैं प्रथम श्रेणी पीजी यूजीसी नेट हूं प्रवक्ता पद के लिए योग्य हूं। विवि द्वारा शिक्षा सत्र 2003 में 'योग्यता'एवं'प्रक्रिया' आधारित मेरी नियुक्ति को G.O में BA स्तर 50% अंकों की बाध्यता के आधार पर 2008 में मेरा'अप्रूवल निरस्त 'करना 'यूजीसी रेगुलेशन'एवं नेट'की हत्या है कोई 'क्रिमिनलाइज्ड व्यक्ति'या सिस्टम ही'ऐसा कर सकता है, वस्तुनिष्ठता'या संविधान मानने वाला नहीं।यह करप्ट प्रणाली क्या इतना भी विचार नहीं कर सकती थी कि 4 वर्षों तक जिसकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर की गयी उसे पांचवें वर्ष में कैसे अयोग्य ठहराया जा सकता?वह भी पूरे वर्ष काम लेने के उपरांत। 

शिक्षण कार्य लेने के उपरांत। इससे बड़ा 'आर्बिट्रेशन'का कोई दूसरा मिसाल नहीं मिल सकता।इसका अर्थ हुआ यशस्वी कुलपति प्रोफेसर रेवती रमन पांडे एवं अंग्रेज़ी साहित्य के स्कॉलर प्रोफेसर कुलपति अरुण कुमार मुझअयोग्य को 4 वर्षों तक प्रवक्ता नियुक्त किया और यदि ऐसा किया हो तो इसका दोषी मैं क्यों?मुझे,विवि से नि का लना एक अपराध तो है ही,यूजीसी नेट को'म्यूट'करना दूसरा अपराध है।

 दुर्भाग्य से दोनों आचार्य दिवंगत हो चुके हैं। दोनों ही विद्वान स्कॉलर'व्यक्तिगत' रूप से मुझे जानते थे परंतु फ्राॅडूलेंट एके मित्तल अभी जीवित है जिस पर विवि को क्राइम का अभियोग पंजीकृत क रा ना चाहिए।

अप्रूवल निरस्त ऑर्डर में मेरी नियुक्ति को 'तथाकथित नियुक्ति"लिखा गया है। मैं नहीं जानता विश्वविद्यालय में 'तथाकथित नियुक्ति'जैसी कौन सी नियुक्ति होती है या 'तथाकथित नियुक्ति'जैसा कौन सा पद  है? परंतु इतना जानता हूं कि विवि में मानदेय प्रवक्ता पद पर मेरी नियुक्ति 'योग्यता'(30 अगस्त 2003"योग्यता',यूजीसी नेट) एवं प्रक्रियागत '(समन्वयक प्रो के सी लाल द्वारा शैक्षिक योग्यता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हुए संस्तुति 22.8.2003 की गई उपरांत मेरे नाम का अनुमोदन’कुलपति प्रो आर आर पांडे द्वारा 22./8 /2003 को किया गया और अंततःश्रीमान कुल सचिव महेश चंद्र द्वारा 30/08/ 2003 को नियुक्ति आर्डर निकाला गया) है.

विवि'आर्बिट्रेरीऑर्डर्स'से चल रहा है।सत्य'अहिंसा'की पूरी ताकत से कहना चाहता हूं कि इसे नहीं चलने दूंगा.

पुनः निवेदन करता हूं विवि मेरा जीवन' एवं सम्मान'मुझे वापस कर दे. 17 अप्रैल को विवि गेट पर 'महा.राज्यपाल' का 'इफिगी बर्न एवं 'पिकेटिंग'करूंगा.जो मेरा मौलिक अधिकार है मुझे हाउस अरेस्ट करने से अच्छा है न्याय'  दें जो मेरा मौलिक अधिकार है और सत्य से अभिन्न है,

.यदि बल प्रयोग से सत्याग्रह दबाने का प्रयास किया वि वस होकर मुझे अनशन' करना पड़ा  तो इसकी जिम्मेदारी कुलपति महोदया की होंगी क्योंकि मेरे फेफड़े एवं लीवर में सूजन है मैं अस्वस्थ हूं।

यदि मैं योग्य नहीं तो विवि का कोई आचार्य योग्य नहीं. ' 'इंडोलॉजिकल स्टडीज''एंसिएंट हिस्ट्री'आर्कियोलॉजी कल्चर'  एवं हिस्ट्री'में मुझसे उत्तम शैक्षिक अभिलेख विश्वविद्यालय के किसी आचार्य के पास नहीं है
'महोदय'
मैं निवेदन करता हूं कि या तो 'सत्य स्वीकार कर लें'या'मुझे सत्याग्रह करने दें'। यदि विवि सत्य के रास्ते पर है तो इसका अर्थ हुआ मैं सत्य'तोड़ रहा हूं और ऐसी स्थिति में मुझे 'कारागार'में डाल दिया जाए अन्यथा 17 अप्रैल को सत्याग्रह 'एकमात्र'अंतिम'विकल्प है। 

प्रति :-प्रति:- महामहिम राज्यपाल मा. मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश
श्रीमान मुख्य सचिव 'गृह सचिन डीजीपी उत्तर प्रदेश
श्रीमान आयुक्त' जिलाधिकारी' एडीजी'डीआईजी'एसएसपी गोरखपुर.

डॉ संपूर्णानंद मल्ल                 
   पूर्वांचल गांधी
पीएचडी इन हिस्ट्री आर्कियोलॉजी हिस्ट्री डिपार्टमेंट फैकेल्टी आफ सोशल साइंसेज देलही यूनिवर्सिटी
सत्यपथ गोविंद नगरी बशारतपुर थाना शाहपुर गोरखपुर
9415418263

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