RSS(Rumours spreading school)व भाजपा के राष्ट्रवाद की परिकल्पना उसी तरह है जैसे; मृग का कस्तूरी के लिए वन-वन भटकना। इनकी तथाकथित राष्ट्रवादी सोच का उद्देश्य है अपने भौतिक लाभों के पीछे श्रमिक हितों के संघर्ष का प्राणार्पण तक विरोध करना। श्रमिक आन्दोलन सफल न हो जाएं इसलिए इनके काम में हर कठिन से कठिन रुकावटें पैदा करना। भाजपा मजदूर हितों के लिए कोई कानून पास तो कर नही रही है, अलबत्ता अमानवीय कृत्य से इनसे लम्बे समय तक कैसे काम लिया जाए उन हथकंडों को कानूनी अमलीजामा पहना रही है। धूर्तता की पराकाष्ठा के दृष्टिगत इनकी दूरगामी सोच ऐसी है जिससे बाल श्रम को बढ़ावा मिलेगा, महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान हमेशा ख़तरे में बना रहेगा, नौजवानों के समक्ष बेरोजगारी विशालकाय दानव की तरह हमेशा मुँह खोले उन्हें निगलने के लिए तैयार खड़ी रहेगी। मजदूर संगठनों का नेतृत्व इन्होंने अपने हाथों में इसीलिए ले रखा है ताकि मजदूर विद्रोह न कर सकें! इस चातुर्य प्रदर्शन से यह मजदूरों के रक्षक कवच में उनके भक्षण का कार्य बड़ी ही आसानी से कर लेते हैं।
यह दोनों संगठन सामाजिक बुराइयों को दूर करने की बरक्स उसे मज़बूती से पकड़ कर रखना चाहते हैं। यह अंध समर्थकों का एक बड़ा समूह इकट्ठा करना चाहते हैं; जिनसे देश में हमेशा अफरा-तफरी का माहौल बनाया और देश के सह-जीवियों को उलझा कर रखा जा सके! इन्हें इलहाम है कि देश के उत्पादकों को मूलभूत समस्याओं से इतर अनावश्यक रूप से व्यस्त कर परजीवियों के शानो-शौकत का इंतेज़ाम किया जा सकता है। भाजपा के राष्ट्रवादी आन्दोलन से लोग उसी तरह भ्रमित है और राष्ट्रहित की प्रत्याशा में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विनाश के सशक्त और सार्थक साधन के रूप में काम कर रहे हैं
जैसे:एक मृग जिसे यह भान नही रहता कि कस्तूरी का वाहक वह स्वयं है और वन-वन भटकता रहता है अंततः अपना पतन कर लेता है। इनके विनाशक होने के प्रमाण तलाशने के लिए सामाजिक नीति को दो ध्रुवों पर कसने की आवश्यकता है।
1. सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण में श्रेष्ठतम स्तर को निर्धारित करना।
2. राष्ट्र की आर्थिक अर्थव्यवस्था की स्वाधीनता को सुरक्षित रखना।
आर्य इन दोनों बातों की चिंता बिल्कुल नही करते। इनका मुख्य उद्देश्य इन दोनों ध्रुवों का सर्वनाश है। यह सर्वथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के पतन व व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था के उन्नयन के विकल्प को प्राथमिकता देते हैं। जिस देश की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो वह राष्ट्र सुरक्षित कैसे रह सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि दरअसल यह देश व राष्ट्र निर्माण की खाल ओढ़े हो जबकि वास्तविकता यह है कि यह अपने भौतिक लाभों व वर्चस्व के लिए देश की एकता-अखंडता को ख़तरे में डाल राष्ट्र को छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं? आवश्यकता है गम्भीरता से विचार,
मनन व चिंतन कर इनकी साज़िशों को असफल करने की ताकि देश का भ्रातृत्व,मजदूरों का हित,महिलाओं की सुरक्षा, नौजवानों का रोजगार व देश की एकता-अखंडता अक्षुण्ण रह सके!
गौतम राणे सागर,
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच ।

0 टिप्पणियाँ