संत कांशीराम अजेय थे:गौतम राणे सागर

 


संत कांशीराम अजेय थे:गौतम राणे सागर

     कांशीराम एक ऐसा नाम है जिसे पराजित नही किया जा सका। आदर से लोग उन्हें साहब कहकर संबोधित करते थे। किंवदंती है हर व्यक्ति के जीवन में उतार चढाव आते हैं परन्तु कांशीराम जी ने इस जनश्रुति को धता बता दिया। प्रतिबिंबित किया उतार कर्मत्यागी के हिस्से और चढ़ाव कर्मयोगी के ज़ेवर। हारता वह है जिसमें अकेले आगे निकल जाने की तृष्णा हो। जीत की सनक हो। वह आगे रहना ही नही चाहते थे। यह तो लोगों का दुलार था कि लोग उन्हें आगे कर दिया करते। जिनमें आगे बहुत दूर निकलने की महत्वाकांक्षा होती है दरअसल वह अपने सामर्थ्य पर भरोसा ही नही करते। जो काबिल हैं पीछे रहने के बावजूद जब भी गिनती शुरू होगी प्रारब्ध उन्हीं से होगा। विस्तार ज्ञान के लिए माओत्से तुंग का अध्ययन किया जा सकता है।

     वह बहुजन समाज को अनवरत सत्ता के क़रीब पहुंचते हुए देखना चाहते थे।14अप्रैल 1984में पार्टी के गठन के पाँच वर्ष बाद ही उन्होंने बीएसपी के भविष्य की रूप रेखा निर्धारित कर दी थी। बसपा ने उनके रहते कभी पीछे मुड़कर नही देखा। चुनाव दर चुनाव सफ़लता की नई इबारत खोदने में मशगूल रही। दो मर्तबा ऐसा भी अवसर आया कि पार्टी ने पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन नही किया परन्तु पिछले चुनाव से पीछे भी नही गई। मतलब साफ़ था कांशी राम साहब प्रतिबद्ध थे या तो सफ़लता का नया प्रतिमान गढ़ेंगे या पुराने रिकॉर्ड को बरक़रार रखेंगे।

     वह हर मोर्चे के लिए अलग अलग सेनापति तैयार करते न कि हर सीमाओं पर खु़द खड़े होने का फ़रमान जारी करते! साहब संत थे उपदेश देते,आदेश नही। आदेश देने वाले जितने भी अधिनायक पैदा हुए सभी का पतन हुआ है। नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन की एक घटना है। दिसम्बर 2,1804 को उसने स्वतः को सम्राट घोषित करने के लिए कंपकपाती ठंड में भी लाखों लोगों को सड़कों पर खड़ा कर अपने सम्रटाभिषेक के इवेंट को देखने के लिए मजबूर किया। अप्रैल 12, 1814 को सत्ता से पदच्युत कर बोर्बन किंग को स्थापित किया गया। साल भर के अन्दर ही नेपोलियन ने पुनः सत्ता हथिया ली। जून 22,1815 को नेपोलियन को एक बार फिर सत्ता से बेदखल कर दिया गया।

       उसके जीवन का मजेदार वाकया यहां से शुरू होता है। वह हमेशा सम्राट के वेश भूषा में रहता। चुनाँचि वह अब सम्राट रहा नही, फलस्वरूप उसे सम्राट के नए ड्रेस मिल नही सकते थे। उसका ड्रेस गन्दा हो गया, बदबू आने लगा था अंततः फट भी गया फ़िर भी वह कपड़ा बदलने को राज़ी ही नही हुआ। पहरेदारों ने कहा आपके लिए नए कपड़े उपलब्ध हैं। बदल लें। नेपोलियन ने जवाब दिए लेकिन यह कपड़े सम्राट के तो नही हैं। पहरेदारों ने कहा: अब आप सम्राट नही है। लेकिन मैं साधारण व्यक्ति भी नही हूं। तुम मुझे सम्राट नही कह सकते कोई हर्ज़ नही हारे हुए सम्राट तो कह ही सकते हो। यहां तुम्हें कोई आपत्ति नही होनी चाहिए। आज भी कुछ लोग भारत में भी इसी मनोवृत्ति से प्रभावित हैं। वह साधारण व्यक्ति का जीवन नही जी सकते। वह मुख्यमंत्री नही हैं तो क्या हुआ पूर्व मुख्यमंत्री तो हैं ही। वह भी एक दो बार के नही चार चार बार के आखिर वह मुख्यमंत्री की प्रवृत्ति से बाहर कैसे आ जाएं।

       कांशीराम जी ख़ुद जीतना ही नही चाहते थे। लोगों को जीताना चाहते थे। अधिकारों से प्रवंचित समाज को सत्ता के शीर्ष पर स्थापित करने के इच्छुक थे वह। जिन्हें उत्कंठ जीतने की प्यास है वह अक्सर पिछड़ जाते हैं वज़ह साफ़ है उनका अवचेतन मन हार की डर से बार बार उन्हें चिन्तित करता रहता है, फलस्वरूप वह अनवरत आगे बढ़ने के बरक्स पीछे मुड़ मुड़कर देखते रहते हैं। परिणाम क्या होगा अंदाजा लगाना इतना भी कठिन नही है। जब साहब संघर्ष कर रहे थे उनके मार्ग में रोड़े अटकाने वालों की कोई कमी नही थी।

         उनका दामन बेदाग था। लोकतन्त्र के सच्चे प्रहरी थे। ख़ुद की कोई इच्छा नही। जीतने की अभिलाषा नही। धन का मोह नही। सम्पत्ति से लगाव नही। परिवार की बाध्यता नही। फिर उन्हें कौन हरा सकता था। कांग्रेस की तमाम साजिशें स्वतः फुस्स हो गई। जो देश के करोड़ों उपेक्षित लोगों को उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए सत्ता के केन्द्र में प्रक्षेपित करना चाहता हो उसे कोई हरा भी नही सकता। साहब की खासियत थी कि उनके विश्वविद्यालय से वही छात्र उत्तीर्ण होते जिनका नामांकन हुआ हो और अनवरत कक्षाओं में उपस्थित होते रहे। अध्ययन पर केन्द्रित रहते।

        साहब के समय में पर्चा लीक होने की संभावना न के बराबर थी। परिणाम यह निकलता कि बिना नामांकन वाले विश्वविद्यालय में टॉप करना तो दूर फेल होने वाली सूची में शामिल नही हो पाते थे। जीत के भूखे प्यासों को कभी भी हराया जा सकता है। मैकियावेली ने अवश्य कहा है कि शासक को कुटिल होना चाहिए। सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक का कुटिल होने का तात्पर्य है वह लक्ष्यों से भटक कर आत्म केंद्रित हो गया है। उसे उसी तरह देखना चाहिए।अन्यथा भयंकर दुर्घटना टालना असंभव।

*गौतम राणे सागर*

  राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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