" महामहिम राष्ट्रपति महोदया"
"मुझे संविधान चाहिए न कम न अधिक"
"मुझे मनुष्य चाहिए न मंदिर न मस्जिद"
मुझसे कोई पूछे कि वेद उपनिषद ज़ेदअवेस्ता गीता रामायण बाईबल कुरान "संविधान"में मुझे क्या चाहिए तो मैं कहूंगा संविधान"क्योंकि समसामयिक विश्व में लिखी गई इस महानतम संहिता में उक्त सभी प्राचीन ग्रंथों के सारतत्व"मानव की महत्ता'"ठीक उसी प्रकार घुलमिल गई है जैसे नदियां समुद्र में मिलते ही अपना अस्तित्व खो देती है।
ऐसी"संविधान संहिता'के होते हुए भी भारत में जीवन' मानवता' इंसानियत पतन पथ पर भागती जा रही है।आदमी के जीवन की कीमत एक्सप्रेसवे' हवाई अड्डों' मंदिरों' मस्जिदों के नीव में दबा दी गई है।
कृष्ण और केशव मंदिर राम और राम मंदिर के बीच कोई संबंध है या नहीं ? इंडोलॉजी का स्कॉलर होने के नाते मैं कहना चाहता हूं इन दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं है। फिर इस महान मुल्क, जो सभ्यता के उदय काल से ही मौजूद है,में हिंसा भय बलात्कार झूठ अपराध चोरी अराजकता मूल्यहीनता चरित्रहीनता अनुशासनहीनता कहां से आई? मैं सत्य एवं अहिंसा की पूरी ताकत से कहना चाहता हूं यह सब कुछ सत्ता के भूखे भेड़ियों की देन है।
ज्ञान"एवं शिक्षा"जब मर जाती है या मार दी जाती है तंब अंधविश्वास की प्रतीक मंदिर मस्जिद मूर्तियां खड़ी होती हैं,या खड़ी की जाती हैं। मनुष्य' मानवता' जीवन के केंद्र से बाहर हो जाता है।
इन मंदिरों मस्जिदों के निर्माण एवं इसमें होने वाले खर्च लूट चंदा एवं चोरी के पैसे से होता हैं। चंदा'चोरी के पैसे का है। मंदिर मस्जिद के निर्माण से लेकर उसके रख रखाव और उसपर आने वाला खर्च इस देश के गरीबों के पेट का पैसा है शिक्षा चिकित्सा संचार न्याय के हिस्से का पैसा है।
मंदिरों मस्जिदों में रहने वाले पुजारी महन्थों में कुछ को छोड़कर शेष ----हैं'
कन्याकुमारी से कश्मीर,गुजरात से असम के बीच जितने भी मंदिर मस्जिद है उन्हें शिक्षालय पुस्तकालय चिकित्सालय वृद्धालय गरीबालय लावारिस बच्चों का बालगृह निराश्रित महिलओ के लिये महिला गृह बनाना चाहिए।
संविधान सभी पंथों को समान संरक्षण' एवं स्वतंत्रता पूर्वक उसके अनुपालन की अनुमति देता है परंतु घर के बाहर सार्वजनिक स्थानों पर इनकी स्थापना एवं निर्माण नहीं।
आखिर मेरे पंथ की रक्षा कैसे होगी? जब मैं मंदिर मस्जिद देखता हूं तो मेरा पंथ" मर जाता है। वेद उपनिषद गीता रामायण कॉल में मंदिर मस्जिद जैसी कोई चीज न थी।भगवान व्यक्ति के भीतर का विषय था।
मैं जानता हूं भारत की संविधान संहिता विश्व में "मरती मानवता" एवं पतन से बचाने का एक मात्र"वेपन"होगा परंतु तब न हम होंगे न आप,और समसामयिक दुनिया भी नहीं होगी।
संपूर्णानंद मल्ल सत्यपाथ ps शाहपुर गोरखपुर
पीएचडी इन हिस्ट्री,देलही यूनिवर्सिटी
9415418263 snm.190907@yahoo.co.in
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