क्यों फिसली हाथ से सत्ता...?

क्यों फिसली हाथ से सत्ता?
     चुनाव आयोग पर तोहमत मढ़ने का कृत्य जारी रहेगा, अप्रत्याशित हार से मिले ज़ख्म की पीड़ा जो छिपानी है। अकर्मण्यों की गिरोह में घिरे राहुल गांधी क्या कांग्रेस को आंतरिक आरएसएस के घुसपैठियों से मुक्त करा पायेंगे? अब जनता संशय की स्थिति में खड़ी हो गई है, उसके मन में प्रश्न कौंध रहे हैं आख़िर वह कांग्रेस को वोट दे क्यों? तमाम मुसीबतों, स्थानीय स्तर पर वैर व बाधाओं को पार कर वह अपने मत का प्रयोग इस उद्देश्य से करता है कि निष्ठुर सरकार से पिंड छूट सके परन्तु कांग्रेस उनके मतों की हिफ़ाज़त में विफल रहती है। एक दो बार नही कांग्रेस जनता के मतों की सुरक्षा में बार बार फिसड्डी साबित हो रही है। जनता कांग्रेस के पक्ष में अपना जनादेश सुनाती है लेकिन चुनावी परिणाम आने के बाद वही जनादेश बीजेपी के पक्ष में दिखता है। परिणामोपरांत प्रत्येक कांग्रेसी नेता बन्दर की भांति इस डाल से उस डाल तक उछल कूद करने लगता है। ‌परिणाम आने के बाद ही उन्हें भान होता है कि केंचुआ (केंद्रीय चुनाव आयोग) बेईमान है, लोकतंत्र की हत्या कर रहा है। परिणाम से पहले वह जाने किस मेलाटोनिन की गोली खाकर चिर निद्रा में सोए रहते हैं।
   जनता के मतों को इज्ज़त मिले, उसके जनादेश को सही तरीक़े से रेखांकित किया जा सके मूल्यांकन हो, यह नैतिक जिम्मेदारी कांग्रेस के कंधों पर थी। अफ़सोस! इतना कमज़ोर कंधा कांग्रेस का होगा कि हाथ सहित उखड़ जायेगा किसी ने सोचा भी नही था। यकीनन हर कांग्रेसी ईवीएम मशीन और चुनाव आयोग को बेईमान साबित करेगा। हम यह प्रमाणित कतई नही कर रहे हैं कि यह दोनों बड़े ही चरित्रवान हैं। इनके सतीत्व पर अंगुली नही उठाई जा सकती। ईवीएम और चुनाव आयोग पर बदचलन होने के आरोप तब भी लगे थे जब कांग्रेस ने 2009 लोकसभा चुनाव जीता था। घटना उद्धृत करने का आशय सिर्फ इतना ही है कि जब ईवीएम को भस्मासुर बनाया जा रहा था तब क्या इस भस्मासुर से बचाव का कोई मार्ग नही तलाशा गया? यदि बचाव का मार्ग है तब क्या वह मंत्र "ईवीएम मैय्या वर दे, सीएम, पीएम की कुर्सी मेरी झोली में धर दे" जिन्हें मालूम है, वह कांग्रेस के टुकड़ों पर पलते हुए भी स्वतः के दल के खिलाफ़ बीजेपी की मदद कर रहे हैं? भस्मासुर को मारने का फॉर्मूला किसी के साथ शेयर करने को कया वह राज़ी नही है? दिल गवाही नही दे सकता है कि स्वीकार किया जाए कि जो तकनीक प्रयोग में लाई जा रही है यदि उसका परिणाम प्रतिकूल रहा तो बचाव कैसे किया जा सकता है, इस बिन्दु पर विचार ही नही किया गया होगा।
       सात अक्टूबर 24 को जयराम रमेश चीख चिल्ला रहे थे कि बीजेपी जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम को बदलना चाहती है। वह भूल गए कि बीजेपी जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम को क्यों प्रभावित करेगी? जब की विपक्ष की जीत से उसे दो लाभ होने वाला है, पहला यह कि जम्मू कश्मीर में चाहे जिसकी सरकार बने बागडोर उसके ही हाथ रहनी है। वहां अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी की ही सरकार होगी। ज्यादातर शक्तियां उप राज्यपाल के पास होगी, अप्रत्यक्ष सरकार ही वहां प्रभावशाली भूमिका निभायेगी। दूसरी यह कि वैश्विक कूटनीति उन्हें प्रमाण पत्र जारी कर रही होगी कि जम्मू कश्मीर में स्वस्थ लोकतंत्र बहाल करने में मोदी सरकार ने बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। चुंकि एग्ज़िट पोल के सारे मदारियों ने एक सुर से सुर मिलाकर हरियाणा में कांग्रेस को बहुमत दिला दी तो कांग्रेसी हो गए फूल के गुब्बारा। हाइड्रोजन गैस भरे गुब्बारे जैसे लगे उड़ने। उन्हें खयाल क्यों नही आया कि जब भी किसी शातिर को ए पर हमला करना होता है तब वह ध्यान भटकाने के लिए बी को धमकाना शुरू कर देता है ताकि सभी का ध्यान बी की तरफ़ लग जाय और लोग ए से उदासीन हो जाएं, उन्हें लूट का निर्विरोध अवसर हासिल हो जाए।
    कांग्रेस कार्य समिति के मल्ल युद्ध के योद्धाओं की दांव पर संकट के बादल मंडरा रहे है। प्रतीत होता है या तो उनकी शारीरिक क्षमता क्षीण हो गई है या फ़िर मानसिक अवस्था ऐसी नही बची है कि वह किसी नए युद्ध कौशल का अभ्यास कर सकें। लड़ते जा रहे है अपने ज़ंग लगे तलवारों से, हर युद्ध में मुस्कुराते हुए शिकस्त दर शिकस्त कबूल करते जा रहे हैं। दुश्मन हर युद्ध में अत्याधुनिक हथियारों से लैस होकर इनके हाथ कतरने में कामयाब है। कांग्रेस किसी भी हार से सबक सीखने को तैयार ही नही है। गुजरात चुनाव का उदाहरण सामने रख एक तस्वीर खींचने का प्रयास करते हैं,2017 विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कांटे का टक्कर दिया। जहां बीजेपी 99 सीट जीतकर अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही वहीं कांग्रेस ने 77 सीट हासिल कर खुली चुनौती प्रस्तुत की थी। कांग्रेस ने इस चुनाव परिणाम से बीजेपी को यह पैग़ाम भेज दिया था कि हमने तुम्हारी कब्र खोद दी है, लाश आना बाकी है,2022 के चुनाव में तुम्हारी लाश लायेंगे दफ़न कर फातिया भी पढ़ेंगे।
        हुआ क्या? कांग्रेस ने 2022 विधान सभा चुनाव में बीजेपी को वॉकओवर दे दिया। राहुल गांधी के लिए जैसे गुजरात विधानसभा चुनाव कोई मायने ही नही रखता था। वह चुनाव संचालन के बरक्स भारत जोड़ो यात्रा में यूं मशगूल थे जैसे वह विश्व विजय अभियान पर निकले हों। परिणाम यह हुआ कि बीजेपी ने गुजरात विधानसभा के सारे रिकॉर्ड धवस्त करते हुए 156 सीट पर जीत का परचम लहराया और कांग्रेस की मैयत पर रोने के लिए कुछ लोग बचे रहे इसलिए 15 सीट छोड़ दी। विपक्ष दल का नेता बन सकें इस काबिल भी नही छोड़ा। भारतीय राजनीति में गुजरात का यह संस्करण कांग्रेस के लिए काला अध्याय रहा है। क्या किसी ने कभी इस हार की समीक्षा की, यदि नही तो क्यों? बीजेपी ने भांप लिया था कि विजय रुपाणी नामक तलवार में ज़ंग लग चुकी है, इस तलवार से 2022 का चुनावी मैदान फतह करना संभव नही होगा, फलस्वरूप सितम्बर 2021में अनुपयुक्त रुपाणी तलवार जो कि विजय के काबिल नही बची थी उठाकर फेंक दिया कूड़ेदान में। म्यान से भूपेन्द्र पटेल नामक तलवार निकाली, युद्ध की पूरी तस्वीर ही बदल दी। रच दिया नया इतिहास गुजरात विधानसभा का।
         कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने विजय हासिल किया क्योंकि वहां की रणनीति में बदलाव किया गया सिद्धारमैया को पूरी स्वतंत्रता नही दी गई। डीके शिव कुमार को भी मोर्चे पर उसी भूमिका में लगाया गया जिस भूमिका में सिद्धारमैया थे। परिणाम सुखद रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस को जैसे ही एक जगह विजय मिलती है वह फूल के कुप्पा हो जाती है। छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने फिर वही गलती दोहराई, अपने मोरचा खाए हथियारों को ही फिर से आजमाने की त्रुटि की पुनरावृत्ति की फलस्वरूप औंधे मुंह आकर गिरे। कांग्रेसी परिवार में जितने वट वृक्ष है वह अपने नीचे किसी दूसरे वृक्ष को पनपने ही नही देते। इन तीनों राज्यों की भारी हार से भी कांग्रेस ने कोई सबक नही सीखा। हरियाणा चुनाव में म्यूज़ियम में रखी बाबा आदम के ज़माने की तलवार भूपिंदर सिंह हुड्डा को युद्ध के मोर्चे पर इस भरोसे से लगाया कि वह मैदान फतह कर लेंगे। जिसे न तो अपनी ताकत का अंदाजा था और न ही जमीनी हकीकत का डुबा दिया लुटिया; बुड्ढा ने। चुनाव परिणाम आने के बाद भी यदि हुड्डा से पूछा जाए कि हरियाणा में चुनाव कौन जीतेगा तब वह कहते सुने जा सकते हैं कि चिन्ता न करो, चुनाव परिणाम बदलेगा, मुख्यमंत्री की शपथ हम ही लेंगे।
          कांग्रेसियों को आत्म मंथन करने की जरूरत है कि आखिर वह कौन से समीकरण रहे हैं जिसके दम पर उन्होंने लम्बे समय तक शासन किया है। कांग्रेस को साप्ताहिक चिन्तन शिविर आयोजित करने की आवश्यकता है। जिसमें उन सभी बिन्दुओं पर गहन विचार किया जाना चाहिए कि आखिर भस्मासुर ईवीएम से छुटकारा कैसे मिले, बेईमान चुनाव आयोग के रहते हुए भी निष्पक्ष चुनाव कैसे संपादित हों। कांग्रेस के लम्बे शासन काल की कुर्सी के पाए कौन कौन से थे? उन्हें फिर से अपने पक्ष में लामबंद कैसे किया जाए। विवेचना में यह यथार्थ प्रकाशित होगा कि कांग्रेस को लम्बे समय तक शासन का सुख देने में अनुसूचित जातियों और मुसलमानों की अहम भूमिका रही है। अनुसूचित जातियों और मुसलमानों ने कांग्रेस का जो सशक्त भवन निर्माण किया था सवर्ण जातियों ने उस पर सिर्फ रंग रौशन का कार्य किया। चुंकि बाहरी आभा में यही सवर्ण जातियां दिखती थी लिहाजा हर कोई इन्हीं के गुण गान में मस्त रहता, जीत का श्रेय भी इन्हीं के सिर बंधता और सत्ता का सारा सुख भी यही भोगते थे।
          अब समय ने तेज़ी से करवट बदला है। अनुसूचित जातियों को अपने संविधानिक अधिकारों की जानकारी है। उसे प्राप्त करने के लिए वह सजग भी हैं। उन्हें यह भी ज्ञात है कि उनके संविधानिक अधिकार उन्हें कोई दूसरा दिलायेगा इस बिन्दु पर वह संशय की स्थिति में खड़े हैं। अब वह सत्ता में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी चाहते हैं। अब वह भरोसा करना नही चाहते हैं बल्कि भरोसा देने के लिए उत्सुक हैं। वह दिखाना चाहते हैं कि संविधान की रक्षा के लिए संविधान के प्रति समर्पण भाव प्रदर्शित करने का नैतिक बल प्रस्तुत हो न कि नस्लों की हिफ़ाज़त के लिए।
जहां तक राहुल गांधी के नेतृत्व का प्रश्न है, लोग भरोसा ज़रूर करते हैं परन्तु यह भी समझते हैं कि कांग्रेस पार्टी संगठन पर राहुल गांधी की पकड़ बहुत ही ढीली है। जब वह यह कहते हैं कि संविधान ही देश का सबसे बड़ा ग्रन्थ है तब क्या वह संगठन और खासतौर से कार्य समिति में अनुसूचित जातियों, पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को उनके आबादी के अनुपात में भागीदारी देंगे? चाहते हुए भी इस पुनीत कार्य को अंजाम देने में सफ़ल हो पायेंगे? यदि वह यह पुनीत मन्तव्य पूर्ण कर लेते हैं तब प्रमाणित हो जायेगा कि संगठन पर राहुल गांधी की पकड़ मजबूत है, अन्यथा आशंका को ही बल मिलेगा।
          तर्क गढ़े जा सकते हैं; मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है, आपका आभार! परन्तु क्या खड़गे साहब को पार्टी ने निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी दी है? यदि हां तो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष उसका नेता होता है फिर राहुल गांधी हर निर्णय में अगुवाई करते हुए क्यों दिखते हैं? देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का प्रधान मंत्री द्वारा होता अपमान लोगों को अप्रिय महसूस होता है लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी द्वारा खड़गे साहब कि की जाने वाली अवहेलना क्यों नही दिखती? कांग्रेस में वर्तमान में मुसलमानों का नेता कौन है जिसे पूरा देश पहचानता हो?
      यदि ईवीएम मशीन और चुनाव आयोग में राहुल गांधी को अविश्वास है तो इन दोनों के खिलाफ़ चलाएं पूरे देश में अभियान। शुरू करें नई यात्रा; लोकतंत्र के सम्मान में राहुल गांधी मैदान में। चरित्र हीन ईवीएम और बेईमान चुनाव आयोग का बहिष्कार हो!
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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