अदृश्य: श्रद्धालुओं, संसाधनों का अद्भुत महाकुंभ

अदृश्य: श्रद्धालुओं, संसाधनों का अद्भुत महाकुंभ*
           230 करोड़ की आबादी वाले उप्र के प्रायोजित महाकुंभ मेले में दो दिन में 6 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। अभी तक कुम्भ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं व संगम में डुबकी लगाने वालों की जो अधिकतम संख्या थी वह लाखों में ही दर्शाया गया था। संभवतः उस वक्त उप्र की जनसंख्या 18-19 करोड के बीच हुआ करती थी। इस जनसंख्या की गणना ज़मीनी हकीक़त भी थी। 2014 में जब से देश के 600 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाया है तब से देश की जनगणना धरातल पर नही, आभासी होती है। मोदी को 600 करोड़ मतदाताओं ने वोट दिया है यह आकंड़ा मेरा नही मोदी जी का है। उस हिसाब से उप्र की जनसंख्या 230 और संपूर्ण भारत की जनसंख्या 1400 करोड़ हो जाएगी या नही ख़ुद गणना कर लें। इस बार मेले का प्रबंधन उच्चस्तरीय तो है ही विश्वस्तरीय भी है। इतिहास की यह पहली घटना है जब मकर संक्रांति के पर्व पर किसी भी श्रद्धालु की दूसरे श्रद्धालु से शरीर नही टकराई। चौदह सौ करोड़ की आबादी वाले भारत के लिए यह ग़ौरव का क्षण था। जब सब के सब ने आस्था के महापर्व महाकुंभ में डुबकी लगा कर अमृत पान तो किया ही,साथ ही साथ स्वर्ग में भविष्य के लिए स्थान भी बुक करा लिया। यक़ीन रखें! इस 45 दिन चलने वाले महाकुंभ मेले से इतनी कमाई होने वाली है, जिससे 2014 के चुनाव में मोदी जी द्वारा सभी के खाते में ₹15-20 लाख यूं ही पहुंच जायेगा के किए गए वादे पूरे हो जायेंगे, ख़ासतौर पर उप्र के नागरिकों को उनकी किस्त अवश्य मिल जाएगी। शायद अन्य राज्यों के नागरिकों को प्रतीक्षा करनी पड़े।
           इतिहास में पहली बार मेले के क्षेत्रफल में वृद्धि करते हुए संगम की धुरी से 50 किमी वृत के दायरे को मेले के लिए विकसित किया गया। पहली बार अदृश्य श्रद्धालुओं ने वृहद पैमाने पर स्नान पर्व में भाग लिया। इससे पहले जितनी बार भी मेले का आयोजन हुआ, ख़ास स्नान पर्वों पर उमड़ी भीड को संभालना मुश्किल हो जाता था। लोग संगम तक पहुंचने से पहले ही इतनी धक्का मुक्की झेल चुके होते थे कि संगम में डुबकी लगाने से तौबा कर लेते, जहां गंगा या यमुना नदियां थोड़ी गहरी दिखती वहीं वह डुबकी लगा लेते। छिछली होने की दशा में सरस्वती मे ही डुबकी लगा लेते। बदइंतजामी का आलम ऐसा रहता कि प्रतीत होता जैसे लोग एक दूसरे पर चढ़े हुए हैं। धन्य हैं मोदी जी का कुशल मार्ग दर्शन। ऐसा कुशल मार्ग दर्शन, जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा होनी ही चाहिए। इस बार न तो ट्रेनों में लोग धक्का खाने के लिए अभिशप्त हुए न ही बसों में। सब ने पुष्पक विमान से सुखद यात्रा कर महाकुंभ स्नान का आनन्द उठाया। आलोचक अपनी उपस्थिति को प्रासंगिक बनाने की मंशा से नुक्ता-चीनी कर सकते हैं कि विमानन के अभाव में पुष्पक विमान टेक ऑफ और लैंडिंग कैसे करता था? उनके लिए एक ही जवाब पर्याप्त है जिस तरह नयनसुख/नेत्रहीन व्हाईट केन के सहारे के बिना अपनी मंज़िल तय करने में अक्षम होता है वैसे ही दिव्य दृष्टि के बिना न तो विमान दिखाई पड़ेगा और न ही विमानन। अप्रत्यक्ष रूप से विकसित इन चीज़ों को देखने के लिए आस्था की दृष्टि की जरूरत होती है।

         विश्व इतिहास में इस कुशल प्रबंधन की चर्चा सदियों ही नही बल्कि जब तक धरती और आकाश रहेंगी, चर्चा के केंद्र बिन्दु में इस घटना की उपलब्धि के साथ तारीफ़ के पुल बंधते ही रहेंगे। अदृश्य शक्तियों के बेताज बादशाह ने इस तकनीक का बहुत ही करीने से उपयोग किया है। पूरे श्रद्धालुओं की भीड़ को देख पाने की अद्भुत शक्ति सिर्फ़ मीडिया को ही प्राप्त है। उदाहरण के तौर पर महाभारत की घटना को राजदरबार में बैठकर देखने और फिर उसके सजीव चित्रण को धृतराष्ट के समक्ष प्रस्तुत करने कि जो दिव्य शक्ति संजय के पास थी वही दिव्य शक्ति अब भारत की मीडिया के पास है।
               मोदी जी को पुरुष या महापुरुष के संकुचित दायरे से देखने की त्रुटि से बचने की आवश्यकता है। वास्तविक तौर पर वह दिव्य पुरूष हैं जो सहस्राब्दी में एक बार ही अवतार लेता है, जिसकी शक्तियों या लोकप्रियता को भांपने के लिए दिव्य दृष्टि की जरूरत पड़ती है। इन्होंने पहले अदृश्य मतदाता और समर्थक उत्पन्न किया और अब श्रद्धालु। इनके प्रताप का वर्णन इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इनके आदेश से गंगा और यमुना मईया ने संगम के व्यास को 25 किमी की रेंज तक फैला लिया ताकि 5 करोड़ श्रद्धालु एक साथ डुबकी लगा सकें। संगम विस्तार में सरस्वती ने बड़े पैमाने पर अपनी भूमिका निभाई।
       ऐसे ही मोदी जी को 600 करोड़ मतदाताओं के समर्थन तो नही मिल जाते है। जब आप इलाहाबाद के संगम को त्रिवेणी के रूप में स्वीकार कर लेते है, यह भी मान लेते हैं कि यहां तीन नदियों का संगम होता है, गंगा, यमुना और सरस्वती। गंगा, यमुना सादृश्य और सरस्वती अदृश्य है तब अदृश्य श्रद्धालु व व्यवस्था क्यों नही हो सकती? जब आप घर में होते हैं, बिना काम धंधे के। लोग आपको निकृष्ट कहते हैं। फब्तियां कसते है, निकम्मा दिन भर बैठा रहता है, रोटियां तोड़ता है। चुंकि आप अभी तक भौतिकवादी हैं, लोग आपसे अपेक्षाएं करते हैं। लोग आपकी व्यक्ति विशेषता की मनोभाव से व्याख्या करते हैं। व्याख्या के आधार पर प्रमाणपत्र के साथ कामचोर का प्रत्यय आपकी ज़िंदगी से जोड़ दिया जाता है। यहां फ़र्क नही पड़ता कि आप किस वर्ण में पैदा हुए हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का विभेद यहां नही रह जाता है। हर परिवार को एक कमाऊ सदस्य की ज़रूरत होती है परन्तु जब आप घर छोड़ देते हैं, सार्वजनिक जीवन में जटा , दाढ़ी बढ़ा लेते हैं, कुछ उदण्ड व्यवहार करने लगते हैं व्यक्तिगत तौर पर कुछ करने के बरक्स भोड़ी बाते करने लगे तब आप उन्हीं लोगों के योगी बन पूजनीय ओर वन्दनीय हो जाते हैं, जिनके व्यंग्य बाणों ने आपको घर छोड़ने के लिए अभिशप्त किया था। मुख्य रूप से ब्राह्मण और गौण रूप से क्षत्रिय, वैश्य को गृह त्याग करने पर योगी का खिताब मिलता है। सिर्फ़ इन्हीं तीन वर्णों के लिए ही संन्यास की विधा उपलब्ध है। शूद्र होने की दशा में आपका यह कृत्य या तो पागल का खिताब दिलायेगा या फिर अपमान व तिरस्कार का। 
 
         योगी होते ही, आप उपयोगी हैं या नही, उठते प्रश्न पर विराम लग जाता है। गम्भीर शोध से ज्ञात होता है कि जिस मेले में इस तरह के लोगों का जमघट होता है उसे पवित्र पावन स्थान कहा जाता है। शोध की विधा सीखने और सिखाने वाले शिक्षण संस्थानों को उजाड़, अस्थाई हवा महल बना कर, ग़रीब की गर्दन पर लादे गए कर से इन परजीवियों का ख़ूब खातिर भाव होगा जो कभी निकम्मे कहे जाते थे। यह प्रवचन करेंगे कि महाकुंभ स्नान विश्व शान्ति के लिए है। तृष्णा में संलिप्त लोग शान्ति की ख़ोज में सोने के मृग के पीछे भाग रहे हैं। 
      सोने के मृग के पीछे भागने की अदा भी राम राज्य में ही संभव भी है। अस्थाई हवा महल बनाने के फायदे यह हैं कि निर्माण कार्य की गुणवत्ता की जॉच की संभावना शून्य रहती है। स्थाई निर्माण कार्य के साईट इफेक्ट्स यह है कि महीना दो महीना के बाद जब निर्माण कार्य दरकने लगता था तब गुणवत्ता से समझौते की बात उभरती है। जॉच की दशा मे वहां कुछ साक्ष्य उपलब्ध हो जाते हैं तथा भ्रष्टाचार खुलने की संभावना प्रबल रहती है। सरकारी ख़ज़ाने से की गई लूट आपको कटघरे में खड़ा कर सकती है। लेकिन महाकुंभ मेले की लूट का पाप वहीं धूल जाता है। मेला समाप्ति तक सारे सबूत वही मिट जाते हैं। इस आयोजन से परजीवियों को ऐश्वर्य और सरकार में बैठे लोगों को अपना घर पाटने के लिए सम्पदा मिल जाती हैं। जब संगम में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं, मोक्ष और दैवीय शक्तियों की कृपा आप पर बरसने लगती हैं तब पाप करने में संकोच कैसा? लूट की त्रिवेणी में जितना लूट सको, लूट लो।
        सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों में उच्च गुणवत्ता की जनता अपेक्षा करती है। स्तरहीन कार्यों पर शोर भी मचाती है। लेकिन महाकुंभ मेले की लूट को 
जब हिन्दू खतरे की चासनी में लपेट कर शिगूफा हवा में उछल रहा हो तो तब किसी को कहां फ़ुर्सत होगी कि वह तुच्छ मसलों जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार पर ध्यान देगा। आपके मनोविज्ञान से भी ख़ूब खेला जा रहा है परन्तु आप शक नही कर पाएंगे। वज़ह आपकी ज़ेहन की उड़ान के पंख इस भाव से कतरे जायेंगे कि संगम में डुबकी लगाने से अमृत पान का अवसर मिलता है लेकिन इसके पहले की सरकारों ने इस अमृत का भी बंटवारा कर दिया था। अब हमने मेला क्षेत्र में मुसलमानों के प्रवेश पर रोक लगा दिया है ताकि अमृत का बंटवारा न हो। मुसलमान जाएं अपना ज़मजम का पानी पीकर अल्लाह को खुश करें।
     हमारे यहां जब स्वदेशी रूप में गुणी लोग मौजूद हैं, वह भविष्य में घटने वाली सभी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लेते हैं, तब मेटल डिटेक्टर या सुरक्षा के अन्य विदेशी उपकरणों की आवश्यकता क्या है? अब तो ज्योतिष और भूत प्रेत की पढ़ाई भी शुरू हो गई है, मोदी जी को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध अपने स्वदेशी तेजस्वी गुणी लोगों पर भरोसा रखना चाहिए। इनकी उपस्थिति में देश की सीमाओं की रक्षा के लिए सेनाओं की क्या आवश्यकता है? हटा देना चाहिए इन्हें। जब हमारे बजरंग बली सोने की लंका को जलाकर राख कर सकते हैं तब चीन और अमेरिका की क्या औकात? चुनाव में इन आराध्य देवो ने अपनी शक्ति का भरपूर प्रदर्शन भी किया है लेकिन अदृश्य रूप में। आने वाले दिनों में मोदी जी चुनाव के देवता के रूप में पूजे जायेंगे। विश्वस्त हूं इन आराध्यों की असीमित शक्तियों पर, यह सीमाओं की सुरक्षा कर वह अपनी ताक़त के प्रदर्शन से सभी हिंदुओं को भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। इसलिए अवसर मिलना चाहिए।
         मोदी जी ख़ुद ही यह दावा करते हैं कि वह पिछड़ी जाति में पैदा हुए हैं, तभी तो उन्हें नीच कहकर गाली दी जाती है। वह हिन्दू धर्म के रक्षार्थ ध्वजा वाहक के रूप में ख़ुद को प्रतिष्ठापित कर चुके हैं। हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक तेली का मुंह देखना पाप होता है, मोदी जी की उद्घोषणा के मुताबिक वह तेली जाति से ही आते हैं। तब भी मोदी जी हर शुभ कार्यों का सम्पादन ख़ुद की उपस्थिति में ही कराते हैं । पहली बरसात में ही राम लला मन्दिर और नवीन संसद भवन के गुंबद से पानी टपकने का कारण; कहीं मोदी जी की उपस्थिति तो नही था? जब हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा में काम कर रहे हैं तब ध्यान रखा जाना चाहिए जैसा कि रामचरितमानस में उद्धृत है;
*बिप्र धेनु सुर संत हित लिंह मनुज अवतार* मोदी जी को शास्त्रों के मुताबिक ही चलना चाहिए था। हमारे देश में मंत्रों से आच्छादित तेजस्वी ब्राह्मणों की एक लम्बी फ़ेहरिश है, उनके श्राप में जो ताक़त है उतनी ताक़त तो दुनियां के किसी भी परमाणु या रासायनिक बम में भी नही है। उनके रहते सीमाओं की सुरक्षा पर देश के बजट का इतना विशाल भाग सेना और हथियारों की खरीद पर खर्च करना कहां की समझदारी है? महाकुंभ के प्रासाद का कुछ रसास्वादन यह देश भी करे। तभी महाकुंभ आयोजन की मंशा फ़लीभूत होगी।
           जनसंख्या और भीड़ की गणना का सही आंकलन के लिए एक सिद्धांत उद्धृत करना अति प्रासंगिक होगा। सरकार के दावे के मुताबिक़ मेले क्षेत्र के लिए 4000 एकड़ भूमि में विस्तार किया गया है। यदि एक व्यक्ति को चलने फिरने के लिए 5 फीट की जगह की ज़रूरत पड़ी तो एक एकड़ में 43560 फीट बनता है। यानि एक एकड़ में 8712 व्यक्ति खड़े हो सकते हैं इस हिसाब से यदि सम्पूर्ण मेला क्षेत्र मनुष्यों से खचाखच भर जाए, तब संख्या बनती है 34,848,000, स्मरण रहे यह संपूर्ण मेला क्षेत्र के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि है संगम का क्षेत्रफल नही। आस्था के मुताबिक़ जो मेले में जायेगा वह संगम में डुबकी लगायेगा ही। सरकारी गुलाबी फ़ाइलों का कारनामा ख़ुद ही देख लें। हम तो सिर्फ़ कहेंगे गुलाबो जरा गंध फैला दो।
*गौतम राणे सागर*
   राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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