आत्म दायित्व की बहती गंगा,संजय कृष्ण बने

संतुष्ट बुद्धि से रथ पर बैठे कृष्ण
अर्जुन से आधार व्यक्त करते हैं।
वे कहते हैं,
सर्वशक्तिशाली मात्र धर्म है। 
शेष सभी सत्ताएँ धर्म,
धर्म अर्थात कर्म के अधीन दायित्व निर्वाह मात्र हैं। 
शक्तियां,धर्म और नीति से ही सीमित होती हैं। 
वे विचित्र परिस्थितियों का चरित्र निवारण उनका नाम ही उपदेश है। संबंध युद्ध वे संजय अर्थात कृष्ण हैं। 
अथे अथ परिस्थितयां आज भी वही है। बसंत का अंत कभी न हुवा,उदार पृष्ठ संजय,आज के कृष्ण वही है। 
संबंधों के युद्ध,प्रेरित धारणा आवाज मिलती है..
*परों को खोल,जमाना उड़ान देखता है*
*धरती नहीं आसमान देखता है*।
*संजय आज कृष्ण हैं।*
*उनके लिए विशेष दिन है*।
*बधाई स्वीकार सम्मान*
*आज उनका जन्मदिन है*।

मेरी बधाई उनतक,उनके लिए। संजय प्रसाद जी को जन्मदिन की बधाई,
बहुत बहुत बधाई--सुजीत सिंह

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