पत्रकारों के आमंत्रण पर वे उनके बीच उपस्थित थे।
बधाईयों का संगम था,उपस्थित समूह,सबकी आंखों में एक प्यार था। सब उनके थे,वे सबके थे।
नेपथ्य से झांकती भावुकता,वहां सब खुश थे।
सात्विक शक्ति यथार्थ,
अजेय संजय,
उनसे मिलकर सब खुश थे।
पल खुशी के थे,सबमें आशा थी।
अपने ही गुलदस्ते से सबका स्वागत करते संजय...
संजय सबके लिये प्रसाद थे।
कहतें हैं न ?
जो मन को छुआ करते हैं,वही अपने हुआ करते हैं।
अव्यक्त स्वर एक ही भाव,तुम रहो हमेशा मेरे अपने---सुजीत
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