बहन जी ने 9 अक्टूबर को कांशीराम ईको गार्डन में आयोजित रैली में जिस तरह योगी आदित्यनाथ की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है उसके सियासी मायने क्या निकलते हैं?
1. राजनीति से मन भर जाना, स्वतः की अपनी स्थापित पत्थर की मूर्तियों पर बुलडोजर चलने के खतरे का अहसास?
2. दल दल में समाती पार्टी के उन्नयन, राजनीति में ख़ुद को जिंदा रखने की हताशा में नीतीश कुमार की राह पकड़ने की सोच?
3. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बयान दिया था कि उनका समाज उन्हें देवी मानता है,भारत की भौगोलिक और धार्मिक लगाव में देवी पर जब तक चढ़ावा चढ़ता रहता है तभी तक उसके शक्ति का अहसास होता है। चढ़ावे के अभाव में उसे शक्तिहीन मान लेने का रिवाज़ है। भविष्य में भी पैसों की खनक कर्ण पटल को सुकून देती रहे इसलिए शक्ति के स्रोतों की तलाश में बीजेपी के साथ खुलकर जाने की तैयारी कर ली गई है?
4. बहन जी की कार्यशैली से जो परिचित नही है वही उनसे समाज हित की अपेक्षा कर सकता है। जिस तरह से राम बोला दुबे ( तुलसीदास) ने स्वयं के सुख के लिए राम चरित मानस लिखी थी उसी तर्ज़ पर बहन जी सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी खुशी को ही तरजीह देती हैं। इस कड़ी में कुछ समाज का भला भले ही हो जाए परन्तु विशुद्ध रूप से समाज का हित उनके एजेंडे में है ही नही? रैली में योगी की तारीफ़ करके अंधभक्तों की नब्ज़ टटोलने की कोशिश की गई है यदि बीजेपी के साथ वह खुलकर आ जाएं तो उन्हें कितना समर्थन मिलेगा?
5. जब बसपा से जीतने की संभावना दिखेगी तभी उनके टिकटों की नीलामी mstc की साईट से की जा सकेगी ?
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक
संविधान संरक्षण मंच।
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