लोकतंत्र की हत्या हो रही है चहुंओर एक ही गूंज कि चुनाव आयोग चोर है। प्रश्न उठता है कि विपक्ष ने क्या दिल से स्वीकार किया कि चुनाव आयोग वाकई में बेईमान है यदि हां तो उसके द्वारा अपनाई गई पक्षपाती चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने की जरूरत क्या थी? उसके बुने गए जाल में फंसना और आयोग को बेईमान कहना दोनों में कहीं सामंजस्य दिखता है क्या?
चोर तब तक छिप कर चोरी कर करता है जब तक उसे भ्रम हो कि उसकी चोरी की करतूत लोगों के संज्ञान में नही है। यदि आपने चोर को दौड़ाया और वह अपने बचाव में छिप गया है तो यक़ीन माने उसके छिपने की वज़ह ख़ुद को बचाने से अधिक आप पर हमला करने की है। जिसे हम सीनाज़ोरी कहते हैं।
ज्ञानेश गुप्ता जिसने चुनाव आयोग की कुर्सी का अपहरण कर आरूढ़ है जब वह यह कहता है कि मतदाता पहचान पत्र में जिनके पते जीरो लिखे गए वह भारत के ऐसे निरीह लोग हैं जिन्हें अपने सिर के ऊपर छत नसीब नही है। वह हम जैसे खुशनसीब नही है। चुनाव आयोग उन्हें भी भाग लेने का समान अवसर दे रहा है। तब भी विपक्ष की सोच और रणनीति क्या पक्षाघात की शिकार थी?
वह सोच ही नही पा रहे थे कि जब आभासी मतदाता मतदान प्रक्रिया में शामिल होंगे तब उनकी पहचान का आधार क्या होगा? यह आभासी मतदाता बूथ पर कतार में खड़े होकर मतदान नही करते हैं शायद चुनाव आयोग ने इनके लिए स्पेशल प्लान किया है तभी तो मतदान के दिन ज़ारी पोलिंग आंकड़े अगले दिन बदल जाते हैं।
विपक्ष बहेलिया द्वारा बिछाए गए जाल में बिहार चुनाव में वह सरसों के दानों के लिए कबूतर की तरह टूट पड़ा। जब उसे मालूम है कि चुनाव स्वतन्त्र और निष्पक्ष नही होंगे तब उसने मन बना लिया है कि यक़ीनन वह चुनाव सत्ता परिवर्तन के लिए नही हो रहा है।
दुनियां की सारी व्यवस्था एक धुरी पर टिकी होती हैं परन्तु लोकतन्त्र दो धुरी पर टिका है। प्रथम: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और द्वितीय: सजग और जीवन्त विपक्ष। जब विपक्ष आश्वस्त था कि ज्ञानेश कुमार चुनाव की निष्पक्षता का एक ऐसा अपहरणकर्ता जिसे अंडरवर्ल्ड के लोगों ने वहां सेटेलाइट से प्रक्षेपित कर रखा है।वह वहां सिर्फ़ इसीलिए प्रक्षेपित किया गया है ताकि सत्ता परिवर्तन की मिसाइल को अपने रडार के दायरे में आते ही मार गिराए।
उसके रडार का दायरा है विपक्ष का सत्ता परिवर्तन की सीमा में प्रवेश की कोशिश करना। जब तक विपक्ष विधायक और सांसद बनने के लिए चुनाव लड़ता रहेगा उसे कोई परेशानी नही है। विपक्ष में सियासत को समझने की पुरी सलाहियत होगी हमें यक़ीन है। विपक्ष की सलाहियत को आधार मानकर पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि विपक्ष सत्ता परिवर्तन के लिए चुनाव लड़ ही नही रहा था। चाहे वह चुनाव महाराष्ट्र का हो हरियाणा या अब बिहार का। राहुल गांधी ने परमाणु और हाइड्रोजन बम फोड़ कर खुलासा किया कि चुनाव आयोग बेईमान है। वर्तमान सरकार चोरी की सरकार है। राहुल गांधी की इस खोज में इतना वक्त लगा कि तब तक महाराष्ट्र और हरियाणा का चुनाव चोरी की भेंट चढ़ चुका था। बिहार का तो शेष था तब भी निद्रा नही टूटी?
विपक्ष की रणनीति न तो सत्ता परिवर्तन की थीं और न ही लोकतन्त्र की मर्यादा बचाना उसके एजेंडा का हिस्सा था। वह चुनाव इसलिए लड़ रहा था ताकि उसका व्यावसायिक प्रतिष्ठान फलता फूलता रहे। यह हक़ीक़त पचा पाना आसान नही होगा ख़ासतौर पर विपक्ष के नेताओं के अंधभक्तों के लिए, उन्हें यह टिप्पणी घायल कर सकती है। नेताओं को इस टिप्पणी से अधिक कष्ट नही होगा। सिर्फ़ दिखावे के लिए वह नाराज़गी व्यक्त कर सकते हैं।
यथार्थ से वह ख़ुद परिचित है और अपनी रणनीति पर विश्वस्त भी। उसे भान है कि राजनीति के इतर वह अन्य कुछ कर ही नही सकता। नागरिकों को सत्ता परिवर्तन के लिए वह उत्तेजित करता है ताकि उमड़ती भयंकर भीड़ देखकर बोली लगाने वाले MSTC की साईट पर उसके टिकटों की बोली ऊंचे से ऊंचे दामों की लगा सके!
बिहार चुनाव परिणाम पर विपक्ष की रूदाली पर केन्द्रित विश्लेषण को विस्तार देते हैं। परमाणु और हाइड्रोजन बम फोड़ राहुल गांधी ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल की लेकिन क्या उन्हें समीक्षा नही करनी चाहिए थी कि उनके परमाणु और हाइड्रोजन बम से चुनाव आयोग का कोई रोवां टेढ़ा हुआ? बिहार चुनाव में उतरने से पहले क्या यह दोनों बम चुनाव आयोग को भयभीत कर पाए या विपक्ष ने चुनाव आयोग की साजिशों से निपटने का कोई पुख़्ता इंतज़ाम कर लिया था समीक्षा की? इन तैयारियों के अभाव में चुनाव में सम्मिलित होने का तात्पर्य साफ़ है कि विपक्ष बेईमान चुनाव आयोग को निष्पक्ष होने का प्रमाण पत्र देने के लिए चुनावी दंगल में लंगोट बांधे खड़ा था।
लोकतंत्र की हिफाज़त की नैतिक जिम्मेदारी विपक्ष की अधिक है। सत्ता पक्ष को असीमित शक्तियों को कंट्रोल करने का अख्तियार मिल जाता है। गुमान में वह बेलगाम होकर अपने जूनून को पूरा करने में तल्लीन हो जाता है। वह नीति रीति भूल बिंदास अपने सुख के लिए काम करने लगता है।
इसलिए लोकतंत्र की मर्यादा की हिफाज़त की जिम्मेदारी विपक्ष की अधिक हो जाती है। जब लेवल प्लेइंग फील्ड हो तब आतताई सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए निस्संदेह चुनाव में सम्मिलित होकर उन्हें पटखनी देनी चाहिए लेकिन जब बेईमान चुनाव आयोग हो उसे बेईमान साबित करने का एक ही विकल्प है चुनाव बहिष्कार। यदि राहुल गांधी ज्ञानेश के निर्देशन हो रहे बिहार चुनाव का बहिष्कार करते तब उस विस्फोट की गूंज सिर्फ़ इंडिया में ही नही संपूर्ण विश्व में सुनाई देती।
जब पूरे दुनियां में घूमकर भारत को दुनियां का सबसे बड़ा लोकतन्त्र घोषित किया जाता है तब दुनियां की सभी शक्तियों को भी मालूम होता कि भारत के लोकतंत्र का चेहरा कितना कुरूप है। भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और रहेगा लेकिन इसका रूप इतना वीभत्स और कुख्यात होगा; लोकतन्त्र को कलंकित करता है। आलेख की लंबाई को दृष्टिगत रखते हुए यहीं विराम देता हूं। अगले आलेख में इन साजिशों को जमींदोज़ करने के विकल्प पर तथ्य परक विश्लेषण प्रस्तुत किया जायेगा।
*गौतम राणे सागर*
उप्र प्रभारी
बहुजन मुक्ति पार्टी।
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