बंदर के हाँथ उस्तरा


     जब दुनिया स्वयं के देश को वैश्विक महामारी के प्रभाव से मुक्ति दिलाने हेतु तल्लीन है," तब हमें टोटकों में विश्वास करने की हिदायतें दी जा रही है। बीमारी से युद्ध करने के सबक सिखाये जा रहे है। इस कृत्य को विश्व गुरू के रूप में स्थापित भारत देश के नागरिक किस पैमाने पर कसें विश्व गुरू या गुरू घंटाल? शिक्षण काल में सबसे तीव्र बुद्धि के धनी छात्र चिकित्सा की शिक्षा ग्रहण करते हैं । उन्हें अपने नाम के आगे या पीछे चिकित्सा शास्त्र के महान डाक्टर का प्रत्यय खूब भाता है योद्धा का नहीं । मरीज उन्हें जीवन रक्षक मान भगवान का दर्जा देते हैं। देश के महान सैनिकों के शहादत को भुनाते-भुनाते अब डाक्टरों के शहादत की भी इच्छा आपने पाल ली क्या गंगा पुत्र? डाक्टरों को इस महामारी से देश को मुक्ति के लिए दवाओं ,PPE, N95 mask,ventilators जाँच कीट व परिश्रम के अनुसार वेतन की आवश्यकता है पुष्पों के पंखुड़ियों और गुलदस्ते की नहीं । जिस दिन देश इस महामारी से निजात पा लें," डाक्टरों एवं मेडिकल स्टाफ के विशेष योगदान के लिए राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा की जानी चाहिए ।
       प्रतीत होता है कि हमनें निम्नवत् कहानी की तरह ही एक अयोग्य व्यक्ति को शासन सौप दी है,"जो आये दिन अपने असंतुलित मानसिक दशा से देश को क्षण-प्रतिक्षण भारी हानि पहुंचा रहा है ।
   पुरानी कहावत है कि बंदर के हाथ उस्तरा नहीं लगना चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि मूर्ख व्यक्ति के हाथ कोई शक्ति या अधिकार नहीं आना चाहिए क्योंकि अपनी मूर्खता के वशीभूत वह उसका सदुपयोग न करके दुरुपयोग कर सकता है जिसका दुष्परिणाम  समाज और देश के लिए अतीव हानिकारक हो सकता है।

     इस बात को अद्यतन संदर्भों में मैं यूँ कहना चाहता हूँ कि किसी भी विभाग या शासन के सर्वोच्च पद पर कोई अपरिपक्व और अदूरदर्शी व्यक्ति नहीं पहुँचना चाहिए क्योंकि सर्वोच्च पद स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक अधिकार-सम्पन्न होता है और अविवेकी व्यक्ति के हाथ असीमित अधिकारों का लगना बंदर के हाथ उस्तरा लगने के सादृश्य ही होता है। और यदि कोई विवेकहीन व्यक्ति भारत जैसे विशाल और विविध देश के सर्वोच्च कार्यकारी के पद पर जा बैठे यानी कि प्रधानमंत्री बन जाए तो उसके कार्यकलाप जनता, समाज और राष्ट्र के लिए कोढ़ में खाज ही सिद्ध होते हैं।

   दुर्भाग्यवश आज कई संस्थानों, सरकारी दफ्तरों और देश के शासन में यही हो रहा है। नासमझ, गंवार, अज्ञानी और मूर्ख लोग आज उस्तरे से लैस है। ये शासक खुद तो लहूलुहान हो ही रहे है परन्तु अहसास नही कर रहे हैं । इनके आदेशों के आलोक में कहर बनकर टूटती पुलिस ने देश की जनता व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों खून से लथपथ कर रखा है।  बन्दर को न तो उस्तरे की अहमियत का पता है और न ही अपनी कमी का । उसका कार्य उस्तरा चलाना है। लिहाजा उसके घातक और भयावह परिणाम सामने आ रहे है। आप किसी बन्दर के हाथ में उस्तरा देने से पहले उसके संभावित परिणामो का आकलन अवश्य करले। अन्यथा वह उस्तरा आपके लिए ही कष्टकारी साबित ही नही हो सकता है अपितु हो भी रहा है ।
गौतम राणे सागर ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ