(शाश्वत तिवारी)लखनऊ/ महात्मा गांधी के पूरे जीवन काल में अगर कोई 'बापू' की छाया बना रहा तो वह शख्स थे खान अब्दुल गफ्फार खान। जिन्हें कोई बादशाह खान कहता, तो कोई सरहदी गांधी। जो बादशाही शान-ओ-शौकत से बहुत दूर सदैव फकीरी का जीवन जीते रहे, और अजीवन अहिंसा को सत्याग्रह का हथियार बनाया।
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बादशाह खान भारत में भी अत्यधिक लोकप्रिय थे। शासन ने 1987 में उन्हें ‘भारत रत्न’ देकर सम्मानित किया।
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यह बात कौमी एकता एवं सादगी के प्रतीक भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खान की जयन्ती पर गांधी भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने कही।
श्री शर्मा ने कहा कि दांडी मार्च के समय भी जब नमक आंदोलन को कुचलने की अंग्रेजी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली थी तब किसी विदेशी पत्रकार ने गांधी जी से पूछा, अगर आपको गिरफ्तार कर लिया गया तो आंदोलन का नेतृत्व कौन करेगा। तो गांधी जी ने बेझिझक जवाब दिया निश्चित है, खान अब्दुल गफ्फार खान।
श्री शर्मा ने कहा कि जिस सपने को दीनदयाल उपाध्याय और सरहदी गांधी ने देखा था। सही मायने में सरहदी गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि उस दिन होगी जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते दोस्ताना होंगे और भारत पाकिस्तान का महासंघ बनेगा।
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को श्रद्धांजलि देते हुए
समाजसेवी रिज़वान रज़ा ने कहा कि बादशाह खान ने 1929 में खुदाई खितमतगार की स्थापना की। खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने हमेशा अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजों का विरोध किया। प्रतिबन्ध के बावजूद वे जनसभाओं का नेतृत्व करते रहे। इस कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

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