राजनीति एक उल्लू और छछूंदर की


  राजनीति में भय और महत्वाकांक्षा का गठजोड़ हमेशा भयावह तश्वीर ही पेश करता है। महत्वाकांक्षा हिंसक, क्रूर, निर्दयी और सनकी होती है। कभी कभी पागल भी। भय हमेशा शरण की प्रतीक्षा में रहता है।

         एक कहानी का उल्लेख अतिप्रासंगिक है उसे उद्धृत करते हैं। एक बार छछूंदरों का एक जोड़ा किसी से भयभीत होकर एक वृक्ष की खोह में जा छिपा। रात्रि में उन्होंने सोचा कि इस वक्त सब सो रहे होंगे हम छिपते छिपाते किसी सुरक्षित जगह पर पहुंच जायेंगे। निकलने से पुर्व टोह लेकर वह माहौल का जायज़ा ले लेना चाहते थे कि कहीं कोई खतरा तो नही! जैसे ही वह बाहर आए पेड़ के ऊपर बैठे उल्लू ने आवाज़ दी हू....... छछूंदरों ने समझा यह कोई सिद्ध पुरुष हैं,परम तपस्वी और अंतर्यामी हैं। ख़ास विशेषता यह कि इन्हें अंग्रेज़ी आती है और बहुत ही अच्छी तरीके से बोल लेते है। रात्रि में देखने की दुर्लभ दृष्टि के स्वामी भी हैं। निर्णय लेने से पहले वह इन उल्लू महोदय की परीक्षा लेने की गरज से पूछा आपको रात में कुछ दिखाई देता है? उल्लू ने फिर आवाज़ दी; हु। छछूंदरों ने समझा यू। फिर दूसरा प्रश्न हम कितने हैं? उल्लू: हू । छछूंदरों ने समझा two।

         फिर क्या था, तय हुआ कि जब एक अंग्रेज़ी बोलने वाले, रात्रि में देखने वाले, परम् संयमी, परम ज्ञानी, युग दृष्टा, विवेकी, दूरदर्शी व दिलावर मिल गए हैं," अब हम अपने पुराने प्रधानमंत्री को सबक सीखा सकते हैं।" तय हुआ सारे अमले बुलाए जाय और प्रजा में मुनादी करा दी जाय कि यही अवतारी पुरुष हमारे अगले प्रधानमंत्री होंगे। प्रधानमंत्री पद के नए नामिनी को लेकर दिन निर्धारित हुआ कि हमारे नए प्रधानमंत्री विश्व की महान विभूतियों की उपस्थिति में शपथ ग्रहण करेंगे। इसी बीच नए प्रधानमंत्री के समक्ष एक लोमड़ी प्रस्तुत हुई, पत्रकारिता जिसका पेशा था। छछूंदरों से उसने कहां हमें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि जिसे रात्रि में दिखाई पड़ता है क्या उसे दिन में भी दिखाई पड़ता है?

      अब तो मुसीबत खड़ी हो गई। उल्लू का दिल बैठने लगा। सोच के अथाह सागर में गोते लगाने लगा। इस उधेड़बीन में लग गया कि यदि लोमड़ी ने प्रश्न कर लिया तो मेरे स्वांग की दुनियां यहीं समाप्त। उसने छछूंदरों से कहा : हू। छछूंदरों ने समझा कि यह कह रहे हैं कि press conference तुम संभालो; सारे छछूंदर खुशी में झूमने लगे, हमारे नए प्रधानमंत्री कितने त्यागी हैं। अपने विशेषाधिकार को भी हमें सौप दे रहे हैं। ऐसे बलिदान की मूर्ति पर शक सुबहा करना देशद्रोह है। सारे छछूंदरों ने लोमड़ी को देशद्रोह में जेल भेज दिया।

       निर्धारित दिन और समय पर उल्लू शपथ लेने के लिए जब निकला तब दिन का वक्त था और दिन में उल्लू को दिखाई नही पड़ता। यह अवसर उल्लू अपने हांथ से निकलने देना नही चाहता था। आपदा को अवसर में बदलने के खेल का वह बेताज बादशाह था। वह बहुत ही धीरे धीर मंच की तरफ़ आगे बढ़ा , सभी छछूंदरों ने करतल ध्वनि से नए प्रधानमंत्री की स्तुति गान की कि हमारे प्रधानमंत्री कितने संस्कारी है वह दबे और सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं। 

   शपथ ग्रहण समारोह समाप्त हुआ सारे मंत्रिमंडल के सदस्य प्रधानमंत्री के पीछे पीछे चल दिए। इस सत्य से पूरा विश्व परिचित है कि उल्लू को दिन में दिखाई नही पड़ता परंतु छछूंदरों की अंध भक्ति और अंध श्रद्धा को न कोई चुनौती दे सकता था न ही दिया। चल पड़े सब उल्लू के पीछे। उल्लू आगे आगे,मंत्रिमंडल और देश की जनता पीछे पीछे। उल्लू नाले, नदी, खाई, चट्टान से लुढ़कता हुआ आख़िर कार एक समतल भूमि पर आ पहुंचा। इस बीच देश के अधिकांश नागरिक अपने प्राणों की आहुति राष्ट्र निर्माण के लिए दे चुके थे। क्योंकि राष्ट्र निर्माण के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए हर बलिदान छोटा है यह भांग उन्हें खिलाया जा चुका था। अब राजपथ का मार्ग आ चुका था परंतु यह वक्त दिन का था उल्लू को न दिखने का वक्त। सामने से एक अत्यधिक गति से आता एक ट्रक दिखाई पड़ा , मंत्रिमंडल के सदस्यों ने देखा। किसी ने उल्लू से कहा सामने से एक ट्रक तेज रफ़्तार से आ रहा है। चुनांचि उसे दिखाई दे नही रहा था और यह राज़ मंत्रिमंडल के सदस्यों पर खुलने भी नही देना चाहता था फलस्वरूप वह निरंतर बढ़ता रहा और मंत्रिमंडल के सदस्यों ने समझा कि नए प्रधानमंत्री जी ने शायद राष्ट्र निर्माण में यह क़दम उठाया हो! उसके पीछे बढ़ते रहे, ट्रक सबको रौदता हुआ निकल गया।

        प्रत्येक महत्वाकांक्षी देश को युद्ध की विभीषिका में धकेलता है; चाहे वह गृह युद्ध हो, विश्व युद्ध हो या फिर महामारी की जंग ही क्यों न हो। उसे भान भी नही होता कि हर युद्ध का मुक़ाबला वैज्ञानिक तरीक़े से किया जा सकता है। रासायनिक युद्ध को रासायनिक, परमाणु युद्ध को, परमाणु हथियारों ,जैविक युद्ध को जैविक हथियारों और स्वास्थ्य युद्ध को चिकित्सीय हथियारों से ही जीता सकता है। परन्तु वह हर युद्ध पाखंड, फरेब, फितरत, निर्दयता, सनक, अंध भक्ति और दमन के हथियार से जीतना चाहता है।

*गौतम राणे सागर*

राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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