केक काटकर मनाया गया जश्न-ए क़ायम और यौमे शबीह-ए रसूल अ.स
बदायूं। इमाम महदी अ.स और मौला अली अकबर अ.स के जन्म दिन के हवाले से सय्यदबाड़ा के मुत्तक़ीन इमामबारगाह में जनाब डॉ ग़ुलाम अब्बास साहब की जानिब से महफिल का आयोजन हुआ। इस महफिल में स्थानीय शायरों ने इमाम की शान में शेर पढ़े। बाद में शिया तंज़ीमुल मोमिनीन कमेटी बदायूं के सदर जनाब अनवर आलम अधिवक्ता ने इमाम महदी अ.स और मौला अली अकबर अ.स की सवान-ए-हयात पर रोशनी डाली।
महफिल की शुरुआत तिलावत-ए-कलाम पाक से हुई। रज़ा आज़मी ने पढ़ा- यजीद-ए-वक्त है मगरूर अपनी ताकत पर, अली के शेर का आना बहुत जरूरी है। जुनैद अब्बास ने पढ़ा सन्ने ने पढ़ा-हवा के दोष पर मासूम खुशबुओं का सफर, बता रहा है कि आमद किसी इमाम की है। ज़ैनुल इबा ज़ैदी ने पढ़ा हमें ले चलो हसन अस्करी की चौखट पर, सुना है उनकी जरूरत किसी गुलाम की है। डॉ कमर अब्बास ने पढ़ा- लिख कर अरीजा खिदमत-ए-मौला में भेज कर, उम्मीद के चिराग जलाने की रात है। मुशर्रफ हुसैन ने पढ़ा नरजिस के दर पर क्यों न हो खुशियों का एक हुजूम, आखिर इमाम-ए-वक्त के आने की रात है। जनाब मुहम्मद रज़ा, अनाफ रिज़वान, डॉ कमर अब्बास, डॉ एहसान रज़ा, शान ज़िया, इन लोगो ने खूबसूरत कलाम पेश किए।
महफ़िल की निज़ामत जनाब डॉ ग़ुलाम अब्बास ने की। आखिर में जनाब अनवर आलम अधिवक्ता ने बताया कि इमाम महदी अ.स 11 वें इमाम हसन अस्करी अ.स के बेटे हैं, और मौला अली अकबर अ.स 3 वे इमाम हुसैन अ.स के बेटे हैं। इमाम महदी अ.स का जन्म 15 शाबान सन् 255 हिजरी में हुआ था। वह ईराक के शहर सामरा में पैदा हुए थे। 12 वें इमाम अ.स अभी तक बाहयात हैं और अल्लाह ने उन्हें परदे में रखा है। उनकी पहली गैबत आठ रबीउल अव्वल 260 हिजरी में शुरू हुई। इस गैबत में इमाम बड़े उलेमा से मुलाकात किया करते थे। इमाम अ. की दूसरी गैबत 10 शव्वाल 329 हिजरी में शुरू हुई। जब दुनिया पूरी तरह नाइंसाफी से भर जाएगी तो अल्लाह पाक के हुक्म से वह जाहिर होकर दुनिया को इंसाफ से भरेंगे।
उलेमा के मुताबिक वह वक्त अब बेहद नजदीक है। इस मुबारक मौके पे कैफ़ी ज़ैदी, हसन आरज़ू , अमन आलम, नबी हैदर, ऑन हैदर, डॉ आबिदी, ख़ुमैल रिज़वी, नवेद, हैदर अब्बास, अरमान ज़ैदी, जारहु, इक़बाल आदि लोगो ने शिरकत की।
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