सरकारी आतंकवाद बनाम कच्छा बनियान हमला

  मणिपुर की घटना किसी एक राज्य की त्रासदी भरा वीभस्त स्वरूप ही नही प्रदर्शित करती अपितु ध्वस्त कानून व्यवस्था के साथ सरकार के निकम्मेपन का चरित्र चित्रण भी करती है। इन परिस्थितियों के बावजूद यदि केन्द्र सरकार राज्य की सरकार को बर्खास्त नही करती है तो पिक्चर साफ़ है एन बिरेन सिंह वही कर रहे हैं जो केन्द्र की सरकार की मंशा है। उद्योगपति जब प्राकृतिक संपदाओं से आच्छादित क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा करना चाहते हैं तब इसी तरह के हथकंडे अपनाते हैं। क्षेत्र की अभीष्ट ज़मीन पर उद्योगपति को तब तक कब्ज़ा हासिल नही हो सकता जब तक उस क्षेत्र में दहशत न फैले! दहशत सरकारी मशीनरी के प्रत्यक्ष सहयोग से फैलती है लेकिन इस क़दम से सरकार की थू थू होना तय है। फलतः मशीनरी अलग मार्ग तलाशेगी ही।
        अभीष्ट भूमि पर प्रत्यक्ष रूप से कब्ज़ा करने की मंशा जब उद्योगपति की हो तब कब्ज़ा के लिए उद्योगपति प्रत्यक्ष तौर पर मौक़े पर मौजूद होता है। कब्ज़ा की नियत से कुछ तोड़ फोड़ और कुछ निर्माण का कुटिल क़दम उठाता है। अशांति की आशंका में पुलिस उपस्थित हो स्थानीय लोगों का नक्सलवाद के नाम पर कत्ल करना शुरू कर देती है। खतरे यहां भी होते हैं, खतरे की बढ़ती असहनीय गंभीरता से उद्योगपति को दोषी ठहराते हुए बच निकलने का सरकार को मौका भी मिल जाता है। यदि ज़मीन पर सरकार का मुखिया ही कब्ज़ा करना चाहता है परन्तु उसे सरकारी फरमान से अधिग्रहण नही करना चाहता, स्पष्ट है उस भूमि का सरकारी उपयोग करने के बरक्स स्वयं के लिए प्रयोग करनी हो। जब व्यक्तिगत उपयोग की मंशा है तब स्वरूप कुछ इस तरह बनता है। दो जातियों के बीच पनपे जातीय उन्माद को सरकार यदि 24 घण्टे में नियंत्रित नही करती है तब तय है कि जातीय द्वंद भड़का नही अपितु भड़काया गया है।
           थानों से राइफल्स और कारतूस लूटना क्या वाकई इतना आसान है? शायद नही। तब तो बिल्कुल नही जब डबल इंजन की सरकार हो। यकीनन डबल इंजन डीजल पीने के बरक्स देश के नागरिकों का रक्त पीने पर उतर आए तब कुछ भी संभव है। जब सरकार धृतराष्ट्र की भूमिका में हो तब सूबे के दहशतगर्दों में इतना साहस बल होना संभव है। सरकार में बैठे लोग जब हैवान ए सियासत के बेताज बादशाह हो तब ख़ुद के दामन पर उछलने वाले कीचड़ से बखूबी वाकिफ होते हैं। अपने खिलाफ़ उठने वाली प्रचण्ड विरोध की धार को कम करने की मंशा से कुछ राज्यों में जो कि विपक्ष द्वारा संचालित हैं में कच्छा बनियान गिरोह द्वारा आक्रमण कराकर छिटपुट घटनाओं को अंजाम दे देते हैं। एक आवरण ढूंढ लेते हैं, बच निकलने का ताकि वह मणिपुर के सरकारी आतंकवाद को कच्छा बनियान गिरोह के हमले से तुलना करती रहे। तब जब विपक्ष हमलावर हो।
        संसद में जब मुल्क के गृह मंत्री द्वारा यह तर्क गढ़ा जाय कि हमने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक बदल दिया, सलाहकार सूरत से भेज दिया तब गम्भीर प्रश्न खड़ा होता है कि क्या मणिपुर स्वायत्त प्रदेश नही है? मुख्य मंत्री को मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को बदलने का अधिकार नही है? केन्द्र सरकार जब कानून व्यस्था के बिगड़ने पर किसी राज्य में हस्तक्षेप करती है तब वह मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक नही बदलती। मुख्य मंत्री को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाती है। सलाहकार राज्यपाल के लिए नियुक्त होते हैं। मुख्य मंत्री के लिए उसके पास मंत्री परिषद है।
        संसद में दिया गया बयान धमकी देता है कि मणिपुर पर सरकारी आतंकवाद पर चर्चा नही होनी चाहिए। जिन्हें मणिपुर विषय पर चर्चा करने से परहेज है वह कच्छा बनियान गिरोह के हमले पर विपक्षी सरकारों को बर्खास्त करने के अवसर की तलाश करने में कुटिलता प्रदर्शित करने से कोई परहेज़ नही करते। मन्दिर निर्माण सरकार की उपलब्धि लेकिन नस्लीय उन्माद के नाम पर प्रदेश को जलने से रोकने में विफलता पर कोई अफ़सोस क्यों नही? हां दरिंदगी की आहूति में घी डालकर अग्नि की तपिश को प्रचंडता प्रदान करने में उन्हें ऐतराज भी नही! बौद्धिक तौर पर साज़िश दिखती है परन्तु धर्मांधता तो इस कुकृत्य को नायक के रूप में ही देखेगी। यही स्वरूप है राष्ट्रवाद और देश भक्त सरकार का। कुछ लोग विपरीत चरित्र के होते हैं। जिह्वा पर कोयल की भाषा होती है आचरण पूरी तरह लोमड़ी की तरह धूर्त प्रभाव छोड़ते हैं। इनके शरीर के अंग में दिखता तो एक ही गला है परन्तु होते दो गले है। शायद एक विलुप्त हो।
      इलाहाबाद के संगम में जिस तरह तीन नदियों के मिलने की किवदंती है, गंगा, यमुना प्रत्यक्ष है लेकिन सरस्वती को विलुप्त श्रेणी में रखा गया है। हमें सरस्वती के विलुप्त होने की कहानी काल्पनिक लगती थी परन्तु जबसे इन दो गलों के दीदार हुए हैं तब से यकीन होने लगा है कि संगम में सरस्वती का भी अस्तित्व होगा ही। दोगलेपन को ही अमृत काल कहते होंगे शायद!
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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