परिपक्व रणनीति


       वर्तमान मीडिया जब टीआरपी के इर्द गिर्द संकुचित है या फिर व्यवसायिक दृष्टिकोण से ही क़बर को ख़बर की चासनी में लपेट कर परोसने के यत्न में तल्लीन तब सुर्ख़ियों में खुद को रख पाने की चुनौती थी इण्डिया गठबंधन के समक्ष। स्मार्ट मूव दिखा भी, जिस बीजेपी को यह लगता था कि इण्डिया गठबंधन मीडिया में स्पेस बना पाने में सफ़ल नही हो पायेगी; दंगल के युग में एक ख्यातिलब्ध दांव था धोबिया पछाड़, इंडिया गठबंधन ने उसी दांव को आजमाया। बीजेपी चारों खाने चित्त। जो इस फितरत में थी कि इण्डिया गठबंधन मीडिया स्पेस से दूर रहे उसके दांव में फंसकर बीजेपी स्वतः उन्हें स्पेस दिलाने को मजबूर हो गई है।
          कल्पना करें यदि गठबंधन की आपसी धींगामुश्ती नही चल रही होती तब क्या मीडिया उन्हें स्पेस देने को राज़ी होता? इण्डिया गठबंधन के धड़ों को बेहतर तरीके से ज्ञात है कि बीजेपी की ताक़त ब्लेम गेम की है। रचनात्मक सोच योजना कार्यान्वयन इनके क़रीब सटता ही नही। इण्डिया गठबंधन के रणनीतिकारों ने बीजेपी के इसी कमजोरी का लाभ उठाया। गठबंधन में दरार होने का गर्दा उड़ा दिया। गर्दे की आंधी में अंधेपन से पीड़ित मीडिया को यहां से टीआरपी की बू आने लगी जो उसकी व्याधि का इलाज़ भी है। तक़रीबन हर चैनल आजकल रात दिन गठबंधन की गांठ पर चर्चा कर रही है। सियासत के खेल में पक्ष में प्लांट की गई चर्चा पार्टी के हित में उतनी कारगर नही होती जितनी मज़ाक उड़ाने पर वह शोहरत हासिल करने में कामयाब हो जाती है। इण्डिया गठबंधन ने ख़ुद को हंसी के पात्र के रूप में प्रस्तुत किया। मोदी जी की कला से हर जागरूक नागरिक वाकिफ है कि वह किस तरह दूसरे की खिल्ली उड़ाने में व्यस्त रहते हैं।
      कुछ राज्यों के समीकरण पर दृष्टि डालने पर जो राजनीतिक परिदृश्य अंकगणित ही नही अपितु रसायन शास्त्र सम्मत उभरती है वह इशारा करती है कि वन टू वन लड़ने के बरक्स छिपकर लड़ने से परिणाम की संभावना अधिक होती है। गल्प में यह प्रसंग बार बार उत्पन्न होता है कि यदि राम वृक्ष के पीछे छिपने की साज़िश न करते तो बालि के समक्ष दो पल भी टिक नही सकते थे। हत्या करना तो दूर बालि के बल और उसके युद्ध कौशल के समक्ष राम का प्राण बचाकर कर भागना भी उस वक्त मुश्किल होता। राम और बालि युद्ध की तर्ज़ पर उदाहरण के तौर पर केरल राज्य का ज़िक्र आवश्यक है। वहां दो ही दल हैं। यदि दोनों दल गठबंधन के एक प्रत्याशी उतारने की गलती करते हैं विपक्ष के लिए स्पेस उपलब्ध हो जायेगा जहां अनावश्यक रूप से बीजेपी की एंट्री हो जायेगी। अलाहदः लड़ने से बीस की बीस सीट दोनों आपस में बांट लेंगे। बीजेपी के लिए कोई स्कोप ही नही बचेगा। 2024 का लोकसभा चुनाव भावनात्मक रूप से नही बेहतर रणनीति कौशल से फ़त्ह की जा सकती है।
          यदि पश्चिम बंगाल में तृणमूल, कांग्रेस और कम्युनिस्ट एक साथ चुनाव लड़ते हैं तब कुछ सीटों पर इण्डिया गठबंधन को लाभ हो सकता है परन्तु बीजेपी की सीट कम कर पाना मुश्किल हो जाएगा। सर्व-विदित है कि वाम दल के अधिकांश कैडर चुनाव में राम दल का गुणगान करने लगते हैं। ऐसी दशा में आवश्यक है कि आपसी धींगामुश्ती चलती रहे ताकि मतों का विभाजन किया जाए। यह रणनीति तभी कारगर होगी जब वाम दल के उम्मीदवार उन सीटों पर चुनाव लड़े जहां उनकी अनुपस्थिति में बीजेपी को विकल्प के रूप में वाम समर्थक ढूंढने लगते हैं। वाम दलों और तृणमूल के कैडर में जो दुश्मनी की भावना जमीनी स्तर पर विद्यमान है वह बीजेपी के जीत का कारण न बन सके। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वाम दलों के कैडर को ममता के खिलाफ़ भड़काकर उन्हें राम दल के पक्ष में खड़ा करने में सफलता हासिल कर ली थी। परिणाम यह रहा कि 2 सीट से लम्बी छलांग लगाते हुए भाजपा 2019 में लोकसभा की अट्ठारह सीट जीतने में कामयाब रही।
     पंजाब में आप और कांग्रेस अलग अलग चुनाव लड़ेंगे तभी गठबंधन को लाभ होगा। बीजेपी की दख़ल की संभावना कम रहेगी। गुजरात में दोनों को एक साथ गठबंधन में वन टू वन फॉर्मूले के तहत लड़ना चाहिए ताकि बीजेपी को टक्कर का एहसास हो। उत्तराखंड, हरियाणा, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, असम, उड़ीसा, गोवा, नॉर्थ ईस्ट स्टेट्स में कांग्रेस को सोलो जाना चाहिए। संभावना है कि यह फॉर्मूला अंडर टेबल डिसाइड होना चाहिए ताकि मुखालिफ के डिवाईड कराने के हथकंडे को निष्फल किया जा सके।
           रही बात ईवीएम के प्रभाव की तो जब विपक्ष को उसकी चिन्ता नही है या उन्होंने मन बना लिया है कि वर्तमान में उपस्थित परिस्थिति में ही चुनाव लड़ना है तब उस बिन्दु पर परिचर्चा को लम्बा खींचने की आवश्यकता ही नही। बीजेपी के विशालकाय रथ ने अब अपने ही सैनिकों को रौंदना शुरू कर दिया है, सम्भावना यही है कि उसकी यह भयंकर भूल उसके पतन का मुख्य कारण बनेगा 2024 लोकसभा का आम चुनाव। लोकतन्त्र में क्षेत्रीय क्षत्रपों की जिस तरह अनदेखी की जा रही है संघ में विघटन का बड़ा कारक सिद्ध हो सकता है। रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान के हौसले पस्त हो सकते हैं परन्तु वसुंधरा की बुलंदी को पाताल लोक में दफ़न करने की कुटिलता स्वयं को अजेय योद्धा समझने वाले महाप्रभु को भारी पड़ सकती है। राजस्थान की रेतीली धरा में वह तपिश अब भी शेष है जो मोदी जी के बुलंदी के नशे को उतारने की भूमिका लिख सकती है।
          किसी भी परीक्षा में विशिष्टता हासिल करने के लिए आवश्यक है कि सभी प्रश्नों को तुक्के नही गुणवत्ता के आधार पर टिक किया जाए। किनारे लगाए गए सैनिक विरोधी टीम की जीत में और ख़ुद को चुनाव का देवता स्थापित करने की फितरत में तल्लीन महायोद्धा की हार की बड़ी भूमिका गढ़ सकते हैं। आवश्यकता है उस हथियार पर नए सिरे से धार लगाने की। निस्संदेह यह चुनाव लोकतन्त्र की रक्षा का आख़िरी मौका है। लोकतन्त्र सुरक्षित रहेगा तभी देश मजबूत एकीकृत और बंधुत्व भाव से प्रफुल्लित रह पायेगा। जिस तरह देश दिन दूना रात चौगुना गति से वैश्विक कर्ज़ के बोझ तले दबता जा रहा है यकीनन सन्देश दे रहा है कि देश फिर से गुलामी की ओर दबे पांव आगे बढ़ने लगा है।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
 संविधान संरक्षण मंच।

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