संविधान हासिल करने और गरीबी अमीरी के बीच की खाई समाप्त करने के दो उपाय हैं

सत्यपथ गोरखपुर 17 अप्रैल 2024

"परम सम्माननीय मुख्य न्यायाधीश /संविधान पीठ"
 सर्वोच्च न्यायालय

" जनहित याचिका"
संसाधन" संपत्ति" सेवाओं" का सामान वितरण या इसपर सबका समान अधिकार किए बिना संविधान की मूल आत्मा समानता" की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ सकते.

'परम सम्माननीय न्यायालय '
समानता के मौलिक अधिकार' सेवा /नौकरियों में बिना भेदभाव अवसर की समानता  तो  है परंतु 'जीवन एवं अर्थव्यवस्था का आधार" 'कृषि योग्य जमीन' लोगों में समान वितरित नहीं की गई. लगभग आधी जनसंख्या के पास जमीन नहीं है. लगभग 20% लोग 80% कृषि योग्य जमीन के मालिक है लगभग पांच प्रतिशत लोगों के पास 35 से 40% जमीन है.आजादी से पूर्व संपत्ति 'मुट्ठी भर अमीरों' पूँजीपतिओं ' राजाओं'सामंतो' के पास थी.


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आजादी के बाद जमींदारी उन्मूलन" एवं प्रिवी पर्स "समाप्ति के कानून बने परंतु कृषि योग्य जमीन लोगों में बराबर वितरित करने की कोई कोशिश नहीं  हुई. पिछली सदी की आठवीं दहाई में 'लैंड कंसोलिडेशन' तो हुआ परंतु उसका उद्देश्य दूसरा था.

'परम सम्माननीय न्यायालय '
संविधान हासिल करने और गरीबी अमीरी के बीच की खाई समाप्त करने के दो उपाय हैं पहला कृषि योग्य जमीन लोगों में बराबर वितरित की जाय  यह बहुत कुछ अंग्रेजों की लैंड पॉलिसी की तरह है फर्क इतना ही है कि अब संविधान के अनुरूप जमीन बराबर बांटी जाएगी जबकि अंग्रेज थोड़े से लोगों को जमीन दे दी थी.परंतु इसमें कमी यह है कि इसमें झगड़ा" एवं मुकदमे" बढ़ेंगे दूसरा तरीका यह है कि जमीन सार्वजनिक घोषित की जाय चुकी सार्वजनिक का अर्थ है लोगों का. जमीन पर सबका अधिकार. संविधान की मूल मंशा यही है भगत सिंह ने गुलामी से आजादी एवं  "समाजवाद" के लिए फांसी का फंदा  पकड़ा था. संविधान के प्रिंबल ऑफ़ कॉन्स्टिट्यूशन में समाजवाद" है परंतु वह लागू होने की प्रतीक्षा में है मैं मानता हूं संविधान  एवं "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन" भगत सिंह पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफ़ाकउल्ला खान आदि की मंशा के अनुरूप जमीन' एवं अमीरों पूंजीपतियों की संपत्ति' सार्वजनिक करने में विलंब नहीं करनी चाहिए

'परम सम्माननीय न्यायालय '
मैं जानता हूं कि यह काम कठिन है और आसमान से तारा तोड़ने के बराबर है क्योंकि इसमें सबसे बड़ी  बाधा धनी अमीर एवं विधायिका के सदस्य हैं. परंतु मैं जानता हूं कि भारत को बचाने का कोई रास्ता शेष नहीं है भारत के 142 करोड लोग भारत को 142 करोड़ तरीके से संसाधन एवं संपत्ति लूटने एवं कब्जा करने में व्यस्त है. इस लूट से 5 किलो अनाज पर जीने वाले 80 करोड़ कंगाल एवं 22 करोड़ कुपोषित बाहर हैं लगभग 20 करोड वे लोग भी इस लूट से बाहर है जो तीसरी एवं चौथी श्रेणी की नौकरी करते हैं, रोटी नमक जुटाने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने में परेशान है. लगभग 20 करोड लोग जिसमे पूंजीपतियों एवं विधायिका के सदस्यों का प्रथम स्थान है,ये भारत के साथ क्या कर रहे हैं? 
झूठ  हिंसा लूटपाट"एवं मूल्यहीनता" का ऐसा ऐसा दृश्य दुनिया के किसी प्रजातांत्रिक मुल्क में नहीं है.

'परम सम्माननीय न्यायालय '
भारत में समानता का विचार सामान्यतःव्यवहार में नहीं था. परंतु बुद्ध के 'मध्य मार्ग' कबीर रविदास अंबेडकर के 
समतावादी विचार में दिखाई देता है. समानता' स्वतंत्रता "का विचार तो अमेरिकी फ्रांसीसी क्रांति से निकला है. जो "मानवता रुपी शरीर" या 'मानवता का शारीरिक रूप' है. मानवता जीवन" समानता" स्वतंत्रता"से परिभाषित होती है

 याचिकाकर्ता 
डॉ संपूर्णानंद मल्ल                      पूर्वांचल गांधी
9415418263   snm.190907@yahoo. Co. In

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