विप्र धेनु सन्त हित लिन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।।
( बालकाण्ड 224)
जब ईश्वर ने ब्राह्मण, गाय, देवता, सन्त के लिए ही मनुष्य का अवतार लिया है, तब , क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र (जो कि 3743 जातियों में विभक्त है) को ईश्वर की आराधना में व्याकुल होने की ज़रूरत क्या है? उन्हें प्रसन्न करने का सारा मनोयोग निरर्थक ही साबित होगा। क्यों वह इस प्रयोजन पर अपना समय बर्बाद कर रहे हैं? मंदिरों, संतो, देवताओं, गाय और ब्राह्मणों से इतर अपने शक्ति का उद्गम तलाशे, लाभ में रहेंगे, सारे पितर हर्षित होंगे।
जिसका बेटा SP, DM, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय का जज बन जाता है उसकी तीन पीढ़ियां पवित्र हो जाती हैं। इनके पिता, यह स्वयं और इनकी सन्तान। इस दिशा में प्रयास करें। आपका यह प्रयास तभी फलीभूत होगा जब आप ईश्वर को प्रसन्न करने के बरक्स अपने बच्चों को शक्ति के स्रोतों पर स्थापित करने का यत्न करें। आपकी मेहनत तभी सफ़ल होगी जब आप, विप्र, धेनु, सन्त से नैराश्य का भाव अपने मन में बैठा लें, न इनसे दोस्ती न वैर, सिर्फ़ वैराग्य। मन्दिरों में अर्पित आपके धन से धर्म नही अधर्म प्रवृत्ति हो रहा है। प्रत्यक्ष या परोक्ष नर संहार का पाप आप अपने सिर क्यों ले रहे हैं? साजिशों और प्रपंच के अभियान से उदासीन हो जाएं, पितर आशीर्वाद के पुष्पों की वर्षा करेंगे। गाय दूध देने वाली जानवर है हम उसको ध्यान से पालेंगे, पूजा कैसे कर सकते हैं?
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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