दलित व पिछड़े नेता भाईचारा बनाने का अनवरत प्रयास करते रहते हैं लेकिन हर बार असफल हो जाते हैं क्यों? कोई पूछे जब चारा तुम अकेले ही खा जाते हो और भाई भूखे अकेला दूर खड़ा रहता है, चारा और भाई का विभाजन भाई चारा कैसे बनने देगा...?
दरअसल इन्हें दलित और पिछड़ा नेता बनने और पार्टी सुप्रीमों कहलाने मे अधिक सुकून मिलता है। बहुजन नेता बनने की इनमें सोच ही नही है। जिस दल में आंतरिक लोकतंत्र न हो उसमें बहुजन नेता तलाशने की कोशिश ठीक उसी तरह है जैसे अंधेरे में सुई तलाशना।
कांशी राम साहब द्वारा शुरू किए गए अभियान में लम्बे समय से जो एक ठहराव आ गया था, नए कलेवर के साथ बीएमपी उस खाली स्थान को भरने के लिए विकल्प के रूप में बहुत ही तेज़ी से आगे बढ़ रही है।
*गौतम राणे सागर*
उप्र प्रभारी
बहुजन मुक्ति पार्टी।
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