जातिवादी जात्याभिमान पर लगाम,ज़मीन पर उतर पायेगा..?: गौतम राणे सागर

जातिवादी जात्याभिमान पर लगाम,ज़मीन पर उतर पायेगा..?: गौतम राणे सागर
   उप्र सरकार ने फ़रमान जारी कर दिया है अब किसी अन्याय, अत्याचार को जातीय चश्मे से नही देखा जायेगा। जाति के नाम पर कोई धरना प्रदर्शन या रैली नही आयोजित की जा सकेगी। दावा यह किया गया है कि जातीय वर्चस्व की लड़ाई समाप्त करने के लिए यह अभिनव प्रयोग किए जा रहे हैं।

 संशय यह है कि जातिवाद के उन्मूलन की मंशा जो जाहिर की जा रही है क्या वह वाकई धरातल पर उतर पायेगा? किसी भी प्रयोग के लिए राजज्ञा ज़ारी करना, उसे व्यावहारिक रूप में ज़मीन पर उतारना दोनों विपरीत धाराओं के पथिक हैं। कदमताल करते हुए एक साथ के यात्री साबित हो पाएंगे संभावना शून्य है।

        जातिवाद के शमन का एक मात्र अचूक प्रयोग है अंतर्जातीय भोज और विवाह। यह विवाह प्रचलित मान्यताओं के अनुसार व्यवस्था से होना चाहिए वरना प्रेम प्रसंग परिवार की अनुमति व संतुति के बग़ैर भी हो ही रहे हैं। ये अपवाद यहां उदाहरण के रूप में स्वीकार करना संभव नही है। क्या योगी सरकार इस तरह की राजज्ञा ज़ारी करेगी कि सभी को अंतर्जातीय विवाह करना आवश्यक होगा जो उल्लंघन करेगा उसके घर को बाबा के बुल्डोजर से ज़मीनदोज करके वहां श्मशान घाट बना दिया जायेगा। 

इस जातिवादी मानसिकता को सबसे अधिक खाद पानी स्वयं के सुख के लिय लिखी गई वह पोथियां है जिसे अति पवित्र ग्रन्थ बना दिया गया है, यह माना जाता है कि उसे किसी पुरूष ने नही लिखा है, ईश्वर द्वारा भेजी गई है। राम बोला दुबे जिन्हें अक़बर का वाह्य दरबारी होने के नाते तुलसीदास का खिताब मिला था वह भी कल्पना की दुनिया की सैर करते हुए लिखते हैं कि; "बिप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार"।

 जब ईश्वर ने सिर्फ़ इन्हीं लोगों के हित साधने के लिए ही समय समय पर मानव रूप में अवतार लिया है," तब जाहिर है कि जो बिप्र गाय देवता संत से इतर हैं हर अवतार ने उनका अहित ही किया है?"
           मनुस्मृति जो शूद्रों के खिलाफ परमाणु बम का प्रयोग करते हुए उन्हें तहस नहस करती है जैसे; 
उच्छिष्टं मन्यम् दातव्यमं जीर्णानि वसनानि च।
पुल्कश्चैव धान्यानां जीर्णश्चैव परिच्छद:।( मनुस्मृति 4/79)
भावार्थ: शूद्रों के लिए कहा गया है कि द्विजों द्वारा उन्हें जूठे भोजन, फटे पुराने कपड़े दिये जाने चाहिए, उनके पास उतना ही धन होना चाहिए जो द्विजों की सेवा करने की एवज में दिया गया है। द्विजों द्वारा अपनाए गए आर्थिक स्रोतों के माध्यम से शूद्रों को अपनी आजीविका ढूंढने की सोचनी भी नही चाहिए। 

यदि सोचते हैं और प्रयोग करते हैं तो कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। क्या योगी जी इन ग्रंथों को भी होलिका के साथ दहन करेंगे यदि नही तो जातिवाद ख़त्म करने का उनका अभियान औंधे मुंह भहरा जाना तय है।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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