बीएसपी गठन का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति की स्थापना के लिए सत्ता परिवर्तन का ध्येय निर्धारित किया गया था। सिर्फ़ कुर्सी तक पहुंचने को सत्ता परिवर्तन नही कहते। सत्ता परिवर्तन समाज का सशक्तिकरण करती है जबकि कुर्सी सिर्फ़ उस व्यक्ति की जो विराजमान है।
बीएसपी का लक्ष्य था बहुजन समाज को शासक वर्ग बनाना। यहां व्यक्ति गौण हो जाता है। क्या लक्ष्य की पूर्ति हुई यदि नही तो जिम्मेदार कौन? समाज शासक बना, समाज का आर्थिक उत्थान हुआ? व्यक्ति विशेष के उत्थान से सिर्फ़ ब्राह्मणवाद ही मजबूत होता है अम्बेडकरवाद नही। ब्राह्मण वाद सत्ता और अर्थव्यवस्था का केंद्रीयकरण चाहता है जबकि अम्बेडकरवाद समस्त स्रोतों के विकेंद्रीयकरण की वकालत करता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व के लक्ष्य को अपना साधन बनाता है।
हमें न तो बीजेपी और न ही कॉंग्रेस शासक वर्ग बनने की छूट देगी इसलिए इनकी सत्ता हासिल करने की मानसिक कमज़ोरी का लाभ उठाकर हमें ख़ुद को मजबूत बनाना है।
यह तभी संभव है जब दोनों दल कमज़ोर रहें। हमारी ज़िम्मेदारी है कि इनमें से किसी एक को भी मजबूत नही होने देना है। कॉंग्रेस मजबूत हो तो ज़रूरत पड़ने पर बीजेपी की मदद की जाए और बीजेपी मजबूत हो तो कॉंग्रेस की मदद करनी चाहिए। कारण साफ है जब यह कमज़ोर रहेंगे तभी हमें अपने समाज को मजबूत बनाने का मौक़ा मिलेगा अन्यथा यह हमारी चमड़ी उधेड़ते रहेंगे।
बहुजन समाज नैतिक है, वह कोई भी कुर्बानी देने को तत्पर भी। मनुवाद की जड़ों में समाज हमेशा मट्ठा उड़ेलने के लिए वे तैयार हैं। क्या उस समाज के ख्यातिलब्ध नेता भी उतने ही नैतिक हैं? बहुजन समाज के किसी भी नेता की जब मनुवादी ताकतें तारीफ़ करने लग जाये तब समझ जाना चाहिए कि वह नेता उनके हाथ की कठपुतली है। समाज के हितों का उसने सौदा कर लिया है।
*गौतम राणे सागर*
उप्र प्रभारी
बहुजन मुक्ति पार्टी
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