लैटरल एंट्री के साइड इफेक्ट


चोर दरवाजे से अफसरशाही की भर्ती गुणवत्ता, नैतिकता, ईमानदारी पर जहां प्रश्न खड़ा करता है वहीं इतने लम्बे प्रशासनिक कैरियर के बाद संयुक्त सचिव तक पहुंचने वाले(IAS) अधिकारियों के चरित्र पर निकम्मेपन का धब्बा भी चिपकाता है। अक्सर देखने में आया है कि अयोग्य शासक योग्य अधिकारी व कर्मचारी से घबराते हैं। ख़ास तौर पर वह शासक जिन्हें इतना भी ज्ञान न हो की रडार मौसम का मोहताज नही होता, वह अपना काम बखूबी करता है। रडार को मलाईदार पोस्टिंग की दरकार नही होती, विश्वस्त भी होता है कि उसे चरित्र हनन के हथियार से भी नुकसान पहुंचाना संभव नही है। बावजूद इसके यदि देश के शीर्ष पर विराजमान महानुभाव यह कहें कि ख़राब मौसम ने पाकिस्तानी रडार को चकमा दिया और सर्जिकल स्ट्राइक को बखूबी अंजाम दिया। शायद एक आईएएस अधिकारी फर्जिकल स्ट्राइक को सर्जिकल स्ट्राइक के रूप मे स्वीकार न कर पाए। प्रबल संभावना है कि वह फर्जिकल को फर्जिकल कहने का आत्मबल न दिखा पाए परंतु ख़राब मौसम रडार को गुमराह कर देगें, हामी भरने के बरक्स शान्त होने को प्राथमिकता देगा।

      राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में एक विषयक प्रश्र का उत्तर देते हुए रायता फ़ैलाने का अथक प्रयास किया है। उनका दावा कि चोर दरवाजा अभी नही खुला है। इस चोर दरवाजे से पहले भी कई लोग उच्च प्रशासनिक कुर्सियों को गरम कर चुके हैं। डॉ मनमोहन सिंह को मुख्य आर्थिक सलाहकार 1972 में बनाया गया चार वर्ष तक वह इस पद पर बने रहे।1976 में उन्हें वित्त सचिव बना दिया गया। 1982-1985 तक यह रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे और 1985-1987 तक योजना आयोग के मुखिया थे। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री भी थे। डॉ मनमोहन सिंह 1966-1969 में संयुक्त राष्ट्र में भी कार्य कर चुके थे। Dr सिंह अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मूल्यांकन दफ़्तर में निदेशक व विश्व बैंक में 1968 में काम कर चुके थे।

              Dr मन मोहन सिंह ही नही एक लंबी फेहरिस्त है चोर दरवाज़े से आने वालों की। बिमल जालान, लव राज़ कुमार, विजय केलकर, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, राकेश मोहन, जय राम रमेश, शंकर आचार्य, अरविंद विरनामी, अरविंद पनगरिया,, अरविंद सुब्रमण्यम, वैद्य राजेश कोटेचा, परमेश्वरन अय्यर, आर रमणन, शेखर बोनू, रूसी मोदी और आर वी शाही। रूसी मोदी जो कि टाटा ग्रुप से पार्श्व भर्ती में शरीक हुए थे उन्हें 1993 में एयर इंडिया का मुखिया बना दिया गया था। जब आर वी शाही बांबे उपनगरीय बिजली आपूर्ति के प्रबंध निदेशक थे को पांच वर्ष के लिए पॉवर सचिव बना दिया गया था तब किसी ने कोई आपत्ति नही की। सैम पित्रोदा को कोई कैसे भूल सकता है, राजीव गांधी की आंख के पुतली। जिनकी सत्ता के गलियारों की हनक; जहां राजीव गांधी के चहेतो को शीतलता तो वहीं विरोधियों की रूहें कंपा देती थी।

           इन चोर दरवाजे से भर्तियों की आड़ में सामाजिक प्रतिनिधित्व समाप्त करने की धूर्तता को भाजपा द्वारा उचित ठहराना बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी के गले से सोने की चेन स्नेचिंग करने के बाद तर्क गढ़ना कि हमने उसके गले पर पड़ रहे भार को कम किया है। पुर्व में लिए गए लैटरल एंट्री को दिल की गहराइयों से स्वीकार करना उचित नही होगा। उपर्युक्त सभी भर्तियों का समय एक नही रहा। हर बार एक ही पद पर भर्तियां की गई। प्रकल्प के दृष्टिकोण से संकल्पित लोग चुने गए ताकि उन प्रकल्पों को अंजाम तक पहुंचाने में सहजता रहे। भाजपा द्वारा लिया गया पार्श्व भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से फ्राड है। कांग्रेस द्वारा लैटरल एंट्री को सिंगल पद घोषित करना उचित प्रतीत होता था। संभव है सामाजिक प्रतिनिधित्व को ठेंगा दिखाने के उद्देश्य की बरक्स प्रकल्पों को संकल्प के साथ अंतिम सिरे चढ़ाने की ही मंशा रही हो। फिर भी यदि प्रतिनिधित्व का ध्यान रख लिया जाता तो बेहतर होता। भारत प्रतिनिधित्व का देश है गुणवत्ता की आड़ में इसकी अनदेखी नही की जा सकती।

        यूपीएससी द्वारा 10 खाली स्थानों को भरने संबंधित वेकेंसी advertisement के ज़रिए प्रत्यावेदन आमंत्रित करना और तर्क गढ़ना कि यह सिंगल पद है; संविधान का खुला उल्लंघन ही नही अपितु कुत्सित व बीमारू मानसिकता का बेमिसाल परिचायक है। पहले 10 संयुक्त सचिव,पुन: 3 संयुक्त सचिव और 27डिप्टी सेक्रेटरी को सिंगल पद कहना फितरत की फेहरिस्त का भी सबसे बड़ा फ्रॉड है। इतना दुस्साहस सिर्फ़ शैतान ही कर सकता है इंसान सोचते से ही कांपने लगेगा।

*गौतम राणे सागर*

राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।


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