हमारे कुछ अबोध साथी उम्मीद करते हैं कि पहले मैं एक ऐसा जज़्बा दिखाऊं जो बाहर लोकतंत्र की दुहाई देता हो और दल के अन्दर लोकतन्त्र का गला घोट रहा हो हमसे नही हो पायेगा। हम दोगला चरित्र लाएं कहां से?
मान्यवर कांशीराम साहब ने बहुजन समाज पार्टी को खड़ा ही इस नारे के साथ किया था कि अब देश का राजा किसी रानी के पेट से पैदा नही होगा। अब राजा बैलेट पेपर से पैदा होगा। हम लोग भी हर जगह यही भाषण देते थे कि बाबा साहब ने सारे रानियों की नसबंदी कर दी है। वह अब राजा पैदा करने की स्थिति में नही हैं।
सवाल उठता है कि क्या उपर्युक्त स्थिति देश में स्थापित हो चुकी है, क्या वाकई ऐसे माहौल का निर्माण हो चुका है? जिस व्यक्ति को देश या प्रदेश के नागरिकों ने अपने वोट और समर्थन से राजनीति के ऊंचे पायदान पर स्थापित किया है क्या वह इस लोभ को छोड़ पाएं हैं?
अपने न सही भाई और भतीजे को प्रक्षेपित कर दिया गया है। जिनकी विचारधारा डॉक्टर अम्बेडकर के विचार से मेल नही खाती, उनसे आंतरिक लोकतंत्र की अपेक्षा करना बेमानी है। लेकिन जिनकी दुकान का शटर डॉक्टर अम्बेडकर के नाम पर खुलता और बन्द होता है, कांशीराम साहब के कर्तव्यनिष्ठ प्रयास से वह दल अस्तित्व में आया हो, उसके अन्दर चल रही इस साज़िश को क्या कहेंगे, यही न कि ऊपर का कवर तो अम्बेडकरवाद का है लेकिन अन्दर का माल मनुस्मृति की फैक्ट्री की ऊपज है।
आज देश में सरकारी नौकरियों को लेटरल इंट्री से भरा जा रहा है यानि कि बग़ैर किसी उद्घोषणा के आरक्षण समाप्त कर दिया गया है। मेडिकल कॉलेज से आरक्षण समाप्त कर दिया गया है? तकनीकी शिक्षा के सभी संस्थानों से आरक्षण समाप्त कर दिया गया है।
तब वह अपनी शक्ति प्रदर्शन कर सरकार की इन साजिशों पर लगाम लगाने हेतु आवाज़ बुलन्द नही कर पाते! इन परिस्थितियों में क्या उनकी जिह्वा तलवे से चिपक जाती है?
उन्हें ज्ञात है उनका यह क़दम सरकार की हरकतों के ख़िलाफ़ है। सरकार उनके आन्दोलन को सरकारी बूटों के नीचे कुचल देगी। भीड़ लाने के लिए मुफ़्त की बसे नही उपलब्ध कराएगी। आपकी जिज्ञासा होगी कि हमने क्या किया? हमने सरकारी ही नही अपितु प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और तकनीकि संस्थानों में भी आरक्षण की व्यवस्था संदर्भित जन याचिका दाखिल कर रखी है। पहली याचिका को तत्कालीन न्यायमूर्ति अता-उर-रहमान मसूदी ने नई याचिका फ़ाइल करने की स्वतंत्रता के साथ निस्तारित कर दी थी।
हर उस व्यक्ति से प्रश्न करने के साहस का ही नाम है अंबेडकरवाद; जो सरकार में हो या भिक्षा पात्र लेकर मुख्यमंत्री बनाने की हर ड्योढ़ी पर याचना कर रहा हो। वहां सेलेक्टिव नही होना चाहिए। कोई अपनी जाति का नेता है तो उसकी स्तुति, अन्य को कटघरे में खड़ा करने की शग़ल को मनुवाद और ब्राह्मणवाद कहते हैं। मुक्त होने की आवश्यकता है।
*गौतम राणे सागर*
उप्र प्रभारी/ मुख्यमंत्री चेहरा
बहुजन मुक्ति पार्टी।
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