16मजदूरों के लाशों की याचना


       सतारा गांव के पास औरंगाबाद में ट्रेन हादसे में हुई 16 मजदूरों की मौतें दिखती हादसा है,"परन्तु है सोची समझी हत्या।" कौन है इन मजदूरों का हत्यारा और क्यों की गई यह हत्याएँ? जब गंगा पुत्र देशभक्ति की रथ पर सवार होकर राष्ट्रवाद के अभेद्य बाण चलाते हैं और AK56 की तरह झूठ की खट-खट गोलियां दागते है," तब उन्हें यह भान नही होता कि यह गोलियां किसकी जीवन लीला खत्म कर देगी और किसे बुरी तरह घायल कर आजीवन के लिए पंगु बना देगी । WHO के दिशा निर्देश के अनुसार दुनिया के देश या तो लाकडाऊन घोषित कर चुके थे या फिर विचार कर रहे थे,"जब परिधान सेवक कोरोना बीज के इंतजार में गुजरात के मोटेरा स्टेडियम के खेत की जुताई कर खाद, पानी दे रहे थे।
           परिधान सेवक जब बार-बार एक ही बहरत बोलते हैं कि मुझे अपने 130 करोड़ बहनों भाइयों की चिंता है," तब संभव है कि उन्हें देश के अमूल्य रत्न किसानों और मजदूरों के आकड़े न ज्ञात हो। लेकिन उन्हें यह अवश्य ज्ञात होगा कि सत्ता की परिक्रमा कर रहे दरबारियों के आकड़े क्या है। चौकीदार के पास  आगन्तुकों की गणना भी न हो कैसे विश्वास किया जा सकता है? परिक्रमा करने वाले की संख्या 130 करोड़ से घटा देते तब भी ज्ञान के चक्षु खुल जाते कि किला से दूर भी कुछ लोग झोपड़ी और सड़क की पटरियों पर लेट कर अपनी नींद पूरी कर लेते हैं।
         ट्रम्प के साष्टांग दण्डवत के उपरांत ट्रेन और हवाई यात्राएं रद्द करने के बाद भी जब आँख की पुतलियों को गोद में उठा सहलाते हुए विशेष विमानों से कोरोना की जननी वुहान से लाकर उनकी माताओं की कोख में डाले जा रहे थे,"तब नही पता था कि इन मजदूरों की भी माँएं है; इनको भी इनकी माँओं ने अपनी छाती का दूध पिलाया है:इन्हें भी घर जाना चाहिए। इन्हें भी भूख और प्यास लगती है। इनकी भूख नून और रोटी से भर जाती है और प्यास किसी तरह के भी पानी से बुझ जाती है। लाकडाऊन घोषित करने से पहले एक बार विचार तो करना चाहिए था,परन्तु आप आदतन रात्रि के आठ बजे आकर उचाट्ट उच्छ्वास भरकर जारी कर देते हैं फरमान; जो जहाँ है वहीं ठहर जायँ सिर्फ 21दिन चाहिए मुझे मै अलादीन का चिराग लाकर सारी समस्याएं छू मंतर कर दूंगा।
          किसी ने आपके फरमान की अवहेलना की क्या, नही न? फिर आपने 19 दिन का समय और मांगा,मांगा क्या छीन लिया। लाकडाऊन को दो हफ्ते के लिए और समय बढा आपने हमारी कब्रें खोदना शुरू कर दिया है। मरने के सिवाय क्या था हमारे पास विकल्प? चूंकि आपकी रगो में व्यापार बहता है;इसलिए हम अत्यधिक भयभीत हो गये कि कहीं ऐसा न हो,"हमारी आँखें,किडनी,रक्त किसी मर्मज्ञ व्यवसायी के व्यापारिक हत्थे न चढ़ जाय! सभी बंद दरवाजे की निराशा में हमने जोखिम उठाया; चल दिये उस भारत माता की गोद की तरफ जिसनें नौ महीने की कठिन तर्पण के बाद जन्म दिया था। पाला था अपने लहू जला कर और हड्डियों को गला कर। लाकडाऊन की वज़ह से हम उसका कर्ज नही उतार पा रहे थे; इसलिए निकले थे उसे अपना शरीर वापस करने। ताकि हम कह सके कि हे माँ! एक कृतघ्न नालायक औलाद का शरीर वापस लेकर हमें अपने ॠण से मुक्त कर दे।
         हमें भोजन व पकवान की चाह कहाँ थी, हमारी क्षुधा की तृप्ति हो जाती है सिर्फ सूखी रोटी के कुछ निवाले से। हाँ हम भुक्खड़ हैं, जम कर भकोसते हैं लेकिन तब:-जब अपना पसीना बहा कर कमाते हैं। इस लाकडाऊन में किये गये अपने समस्त घोषणाओं का 10% भी यदि परिधान सेवक ने पूरा किया होता,"तब हम अपनी झोपड़ी या सड़क के किनारे की पटरियों पर पड़े रहते। गुजारा कर लेते। अफसोस है कि हम यह भांप ही नही पा रहे हैं कि यह सभी हथकंडे अभी शुरू हुए हैं या जन्मजात से ही सर्वगुण संपन्न है आप। बस इतनी कृपा करें दयानिधान! हमारी हत्याओं को ट्रेन दुर्घटना का नामकरण कर मृत्यु के पश्चात् भी हमें कलंकित न करें । इतना मूर्ख साबित करने की कुत्सित योजना न बनाएं । हम पटरियों के बीच सो गये  थे और ट्रेन रौंदते निकल गई । हे! जुमलेश्वर क्या आप यह साबित करना चाहते हैं कि हमने देश को आर्थिक समृद्धि के लिए खोले गये मधुशाला में रखे PM care fund की  दान पेटी में दान किया और वहां से मिले प्रसाद का सेवन कर ट्रेन की पटरियों के बीच लेट गये और हमारी रोटी व चटनी भी ट्रेन घसीटते हुए बिखेर कर चली गई?
               स्वर्ग या नरक में जहाँ भी हमारी आत्मा भटक रही है उसे कलंकित न करें। हमारी आत्माएं आपसे जानना चाहती हैं कि क्या रेल की पटरियों के बीच आपने कोई बिस्तर डलवा रखा है जिस पर जाकर हम सो गये? हम ट्रेन हादसे के शिकार नही हैं। हमारी हत्याएं हुई हैं। प्रत्यक्ष रूप से आपके भय के व्यापार ने हमें मारा है और अप्रत्यक्ष रूप से हमें कत्ल करने की रणनीति आपने बनाई है। आप हैं हमारे हत्यारे। जिन नरभक्षियों को आपने सड़कों पर छोड़ रखा है,"वह इंसान का खून दूर से ही सूंघ लेते हैं।" देखते ही टूट पड़ते हैं। शराब सेवन की आपकी अपील ने देश के अधिकांश नवयुवकों को प्रभावित कर रखा है। वह देश को आर्थिक शक्ति बनाने के आपके अभियान को आगे बढ़ाने में व्यस्त हैं। वही नरभक्षियों को भी अंगुरी का सेवन करा देते हैं और वह हमें पीटते-पीटते कब रौ में बह हमारी इहलीला समाप्त कर देते हैं उन्हें होश ही नही रहता । हमारी श्वास विहीन  शरीर का जैसे ही अहसास होता," उनके हाँथ-पाँव फूलने लगते हैं । आप सभी के सहयोग से हत्यारे हमें दोषी साबित करने के लिए ट्रेन के पटरियों के बीच हमारे शवों के लेटा रेल दुर्घटना का नाम दे देते हैं ।
          हमारी आत्माएं हत्यारों के खिलाफ़ गवाही अवश्य देगी। कभी न कभी कोई धर्माधिकारी बैठेगा न्यायालय की कुर्सियों पर सुनायेगा हमारे हत्यारों को सजा। देश के समस्त सजग नागरिकों एकबार बस एक बार! ट्रेन के पटरियों के बीच सोने की थ्योरी को संजीदगी से परखें;और विचार करें क्या वाकई यह कहानी संभव लगती है। जब ट्रेन दो किमी दूर रहती है तभी से रेलवे की पटरियों में तेज कंपन शुरू हो जाते हैं आधे किमी की दूरी रहने पर इतना हिलने लगती हैं कि मुर्दा भी उठकर खड़ा हो जाय! जिसे 300-500 किमी की दूरी तय करनी है," वह पटरियों के बीच सोना तो दूर चलना भी पसंद नहीं करेगा।"
     एक बार हमारी मौतों और SRG स्टील कनेक्शन को जोड़ कर CBI जांच करा ली जाए,"शायद हत्यारों का हाथ ही नही 
चेहरा भी नज़र आने लग जाय!
 गौतम राणे सागर ।

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