क्या हमें उन्हें मत देना चाहिए...? एक बार विचार अवश्य करें! जब लोग मंदिर में मेरे प्रवेश करने से अपवित्र हो जाते हैं अंदर विराजमान ईश्वर दूषित हो जाता है; तब क्या हमारे हाथ से चढ़ाए गए धन व अन्य चढ़ावे जिसे पुरोहितों को अपने हाथों से उठाना पड़ता होगा उनके हाथ अपवित्र नही हो जाते होगे? और हाथ प्रक्षालन से भी पवित्र नही हो पाते होंगे? यदि यह सभी चीजें धुलने से पवित्र हो सकती तब मन्दिर या पुरोहित अपवित्र नही होते। मनुष्यों द्वारा मूर्तियों के समक्ष जलादि भेट करने के पश्चात् एकांत होते ही कुत्ते भी अपनी आस्था प्रकट करने जाते हैं। वह भी कुछ न कुछ भेट करते ही होंगे। बाज़ार से उन्हें पूजा की अन्य सामग्री मिलती नही फलस्वरूप आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांत पर चलते हुए जलाभिषेक से ही काम चला लेते होंगे। नियमित रूप से पुरोहित स्नान करते और मूर्तियों को धुलते होंगे तब भी दलितों के मंदिर में घुसने से पुरोहित और मूर्तियां अशुद्ध हो जाती हैं तो अस्पष्ट है कि धुलने के उपरांत भी दलितों के स्पर्श की चीजें अशुद्ध की अशुद्ध ही रहती हैं।
दलितों द्वारा अर्पित चढ़ावा पुरोहितों को हाथ से उठाना पड़ता होगा फलस्वरूप उनके हाथ अशुद्ध हो जाते होंगे। अक्सर देखने में मिलता है कि जिस बर्तन में दलित भोजन कर लेता या पानी पी लेता है उसे निकाल कर लोग बाहर रख देते हैं। इन प्रवृत्तियों के आलोक में हमें ऐसा लगता है कि पुरोहित को अपने अपवित्र हाथ काट कर अलग रख देने पड़ते होंगे। दलितों को इस महापाप से बचना चाहिए। मंदिरों में चढ़ावे और अन्य मूल्यवान वस्तुएं दान करने से उन्हें बचना चाहिए ताकि पुरोहित मलिन होने से बच सकें! यदि दलित व पिछड़े जीवन भर व्रत, लपसी सुहारी व अन्य चढ़ावे के बाद और रामायण कथा, सत्यनारायण कथा इत्यादि कथा सुनने पर भी मलिन के मलिन ही हैं तो इन्हें क्या हक है कि मंदिरों में चढ़ावा चढ़ा कर कुलीन पुरोहित को दूषित करें।
दलितों को विचार करना चाहिए कि जो लोग हमारे यहां भोजन करने से दूषित हो जाते हैं। क्या वह हमारा उपजाया हुआ अनाज खा के पचा पाते होंगे और अपवित्र होने से भी बच जाते होंगे; संभव नही लगता है। हमें इस कृत्य से बचना चाहिए। अपने हाथों से उगाए अन्न को दूर बहुत दूर रखना चाहिए ताकि कुलीन लोगों के शरीर का कोई भाग उस अनाज से स्पर्श न हो जाए।
क्यों कुछ लोग हमसे रोटी बेटी का रिश्ता करने से कन्नी काटते हैं क्या उन्हें भय होता होगा कि भद्र लोग उन्हें जाति से बहिष्कृत कर देगे? यह कृत्य उन्हें नीच बना देगी? उनका भय निरर्थक नही है। प्रचलित सामाजिक न्याय व्यवस्था यही कहती है कि उन्हें अपने भद्र लोक में रहना चाहिए। हमें यह स्वीकार है कि लोगों के जातीय स्वाभिमान में किसी तरह से दख़ल नही देना चाहिए। बार बार जिन लोगो को हमारे स्पर्श से मलिन, रोटी बेटी के संबंध से जाति बहिष्कृत, हमारे आरक्षण के समर्थन से नीच होने का भय सताता है उनके कष्ट बढ़ाने का हमें कोई अधिकार नही है। हज़ार बार लाख बार सोच कर देखें जो लोग हमारे हाथ से पानी पीने, खाना खाने, से अशुद्ध हो जाते हैं, रोटी बेटी का संबंध रखने से जाति बहिष्कृत हो जाते हैं, दलितों और पिछड़ों के आरक्षण का समर्थन करने से नीच हो जाते हैं। उन्हें अपना मत देकर क्या हम उनके समक्ष अपवित्र,धर्म भ्रष्ट व जाति बहिष्कृत होने का संकट पैदा करने का कुचक्र नही कर रहे हैं?
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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